26 अप्रैल 2009

इंतज़ार और अभी और अभी .......

कैसी खुबसूरत होती होगी वो शाम अब भी ,

जब झीलके किनारे बैठकर सूरज अपना लाल अक्स देखता होगा ,

तब यादोंके एक कंकरसे पानीमें एक तरंग उठता होगा ,

जब लौटेंगे हम तब उस तरंगको ठहरा देंगे ,

आज इस हँसी शामको फ़िर जिन्दा बना देंगे ,

इंतज़ार थोड़ा कर ही लो जिंदगीको वापस बुला लेंगे ...........

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कितने ज़ख्म और देगी ये जिंदगी ?

अब तो ज़ख्मके लिए भी जगह नहीं है दिल पर ,

ये लहू बह रहा है ? या बह रहे है अश्क ?

किस खता की सज़ा दे गए ये भी पता नहीं है ..............

3 टिप्‍पणियां:

  1. wah...kya baat hai...

    suraj apna lal aks dekhta hoga....

    bohot achche....

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  2. कितने ज़ख्म और देगी ये जिंदगी ?

    अब तो ज़ख्मके लिए भी जगह नहीं है दिल पर ,

    ये लहू बह रहा है ? या बह रहे है अश्क ?

    किस खता की सज़ा दे गए ये भी पता नहीं है ...........bahut sunder shabdon ka sanjojan hai

    जवाब देंहटाएं

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