कब मुस्कराया था आखरी बार मैं
ये सोचते हुए होठों पर हंसी आ गई.........
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तनहा रहना चाहा है अब हमने
मुस्कानको बनाकर चेहरेका नकाब................
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असमंजसमें डाल जाती है अजबसी कशीश
पलकोंकी दहलीज पर खडे अश्कोंकी आतीश...........
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तुम्हारी चाहमें अब कोई चाहत नहीं,
नामसे बढकर तुम्हारे अब कोई राहत नहीं........
तनहा रहना चाहा है अब हमने
जवाब देंहटाएंमुस्कानको बनाकर चेहरेका नकाब....
kya baat hai bahut badhiya . dhanyawad.
बहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर पंक्तियों में सुन्दर मनोभाव!
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