अबकी बार हरिद्वार से टाटा सूमो किराये पर लेकर एक और परिवार के साथ हम निकल पड़े है . गर्म कपडे अबकी बार एक एक करके धीरे धीरे बाहर आ रहे है ...
अब हम सब जा रहे है श्रीकृष्णलीला में अपना नाम अमर कर जाने वाली और हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक हिमालय के चार धाम में एक धाम यमुनोत्री ....यमुना नदी का जन्मस्थान ...एक बार फिर मसूरी की वादियों से होकर हम कम्प्टी फालवाले रस्ते होते हुए गुजर रहे थे . पहाडों का कद अब बड़ा होने लगता है . कभी अपने घने जंगलों के लिए मशहूर हिमालय के पेड़ विलुप्त हुए दिखाई दे रहे है .कम्प्टी फाल से १५ किलोमीटर दुरी पर यमुना पुल से गुजरते हुए हम पहली बार यमुना नदी का दर्शन कर पाते है .चंचल बच्चों की तरह उछलने वाली और पहाडी राग में अपना गाना गति हुई नीले रंग के पानी वाली यमुना का जल श्रीकृष्णके सांवरे रंगसे मेल खाता दिखाई देता है .हरी भरी वादियाँ बस्ती से दूर जाते ही फिर लौट आती है . यहाँ के पेड़ पौधों की भी हर जगह अपनी अलग ही पहचान है . बर्फसे ढंके हुए हिमशिखरसे हम अभी बहुत दूरी पर है ...
यहाँ पहाडोमें रात्रि के आठ बजे के बाद ड्राइविंग वर्जित है . उस वक्त हम वहां के छोटे से कसबे बारकोट में पहुँच गए . यहाँ यात्रिओं के ठहरने के लिए होटल एवं धर्मशालाओं का पुख्ता इंतजाम है . रात्रि विराम वंही पर हुआ .यहाँ पर एक खास बात मैं उन लोगों के लिए बताना चाहूंगी जो मैदानी इलाकों से पहली बार पहाडों में आ रहे है .यहाँ का वातावरण मैदानी इलाकों से बिल्कुल भिन्न किस्म का होता है .यहाँ मोटर मार्ग से जाना पड़ता है और उस वक्त ऊंचाई पर जाते हुए घुमावदार रस्ते पर जब वाहन चढ़ते है तब कई लोगों को उलटी , वायु प्रकोप या जी मचलने की शिकायत हो जाती है . उसके लिए आप यात्रा के प्रारंभ से ही अपने फेमिली डॉक्टर से योग्य दवाएं आदि साथ रखे .सुबह के वक्त थोड़े नाश्ते के साथ वे दवाईयां लेले और रस्ते में खाना टाल दे .फ़िर रात्रि मुकाम के वक्त ही भरपूर भोजन कर लें .क्योंकि पहाड़ की आबोहवा से संतुलन बनने में हमारे शरीर को तकरीबन दो दिन का वक्त लग जाता है . अपने साथ पोलीथिन की बैग का बड़ा पैकेट ले ले ताकि अचानक ही उलटी आते वक्त आप उसमें ही उलटी कर सकें और बाहर फेक दे ताकि दूसरे यात्री को असुविधा या गंदगी न होने पाए .बारकोट से बड़ी सुबह हम लोग नाश्ता करके हम छोटी छोटी पहाडियों से गिरते हुए और निचे बहती यमुनामें मिलते हुए छोटे छोटे जरनोंको देखते हुए आगे बढ़ने लगे .हम एक जगह पर हम रुके . वहां एक छोटा सा प्रपात था जो ऊँची पहाडी से गिर रहा था . थोड़ा ऊपर चढ़कर हम उसके पास गए . चारों और पहाडोसे घिरे उस जरनेकी शोभा कभी न भुलाने लायक थी .वहां पर एक छोटी सी झोपडी में वहां के लोगों ने झरने के पानी को मोड़ दिया था और उसके प्रवाह से एक आटा पीसने की घंटी को चलाया जाता था . क्या कमाल था ये इंसानी दिमाग और उसके इस अनुठे उपयोग का !!
हरी भरी वादियों के साथ जूमते हुए हम पहुंचे स्यानाचट्टी नाम की जगह पर . वहां रुकने की व्यवस्था भी है . थोडी ही दूरी पार करने पर अब हम लोग पहुँच चुके है हनुमानचट्टी नामक जगह पर . ये बड़ी बसों के लिए अन्तिम स्थान है . यहाँ से १४ किलोमीटर की दूरी पर यमुनोत्री है . यहाँ से यात्रीओं के लिए टट्टू, जीप की सुविधा है . अगर आप निजी वाहन से जाते है तो और ७ किलोमीटर तक आप वाहन से जा सकते है . यहाँ एक और बात बताती हूँ की निजी वाहन किराये पर लेते वक्त आप यह जरूर तय कर लें की गाड़ी जानकीचट्टी तक जायेगी वरना ड्राईवर लोग यहांसे आगे जाने के लिए अतिरिक्त पैसे ऐंठते है . यहाँ से सात किलोमीटर पर जानकीचट्टी है . वहां पर रहने की सुचारू व्यवस्था होती है . मोबाइल धारक के लिए सिर्फ़ यहाँ पर बीएसएनएल टावर की सुविधा उपलब्ध है . यहाँ पर कोई नेटवर्क काम नहीं आता है . एस टी डी बूथ हर जगह होते है ...
हम पहुंचे उसके दूसरे दिन यमुनोत्री मन्दिर के द्वार अक्षय तृतीय के दिवस पर खुलने वाले थे . हम वहीं पर रुक गए . पास में ही यमुना नदी एक तूफानी झरने के समान बह रही थी उसे भी देखने चले गए . यहाँ के घर इस तरह से बने है की उसके अन्दर कम से कम ठंड लगे .लोग भी काफ़ी सीधे और मिलनसार होते है .इधर आते वक्त रास्ते में पहली बार बर्फ से आच्छादित हिमशिखर के दर्शन हुए . कैमरे बाहर आने लगे थे . कमरे के बरामदे से ही बड़े हिमशिखर के दर्शन हो रहे थे . जगह चारों और से ऊँचे पहाड़ से घिरे हुई थी . उस नयनाभिराम नजारों को बयां करने के लिए मेरे पास शब्द भी कम पड़ रहे है. वह बन्दर पुच्छ की चोटी थी .यहाँ पर आप व्यक्ति दीठ कमसे कम तीन से चार गर्म कपडे रखे तो उचित होगा ...
आप किस्मत को मानते हो ? यहाँ पर मैंने अपनी जिन्दगी का सबसे अदभुत नजारा रातके वक्त देखा .ठंड बहुत ही थी .मेरे पतिदेव की नींद रात में अचानक खुल गई .वे बाहर गए और थोडी देर में वापस आकर मुझे जगाकर बाहर ले गए .वहां पर हमने जो आसमान का अदभुत नजारा देखा वह शायद में कभी भी भुला न सकूं !!! सारे सितारें जैसे सिर्फ़ एक एक फ़ुट की दूरी पर ही सजाये गए थे .उनकी चमक भी बहुत ही ज्यादा थी और वे हमारे एकदम ही नजदीक नजर आ रहे थे . हम जैसे सितारों की इस बारात में ही शामिल हो गए थे .पीछे बर्फ के आच्छादित हिमशिखर भी एकदम स्पष्ट नजर आ रहा था .मध्यम रौशनीवाली इतनी सुंदर रात मैंने कभी भी न देखि थी न देखूंगी शायद !!!! सिर्फ़ एक शब्द ही जुबान पर था !! लाजवाब !!
हम दर्शन के लिए सुबहमें रवाना हुए . मेरे पतिदेव और बेटीने पैदल जाने का फ़ैसला किया और मैंने आगे चलकर कंडी ले ली .सात किलोमीटर तक की ये चढाई बिल्कुल सीधी है .रास्ते की चौडाई सिर्फ़ पांच फीट तक की है .इसी में से टट्टू , पालखीवाले , कंडीवाले , और पैदल यात्री आने और लौटने वाले गुजरते रहते है .सरकारने पेवर ब्लाक वाले रस्ते बनाना तब शुरू कर दिया था .बीचमें पानी से भीगे पत्थरवाले चिकने मार्ग पर भी चढ़ना पड़ता है .ये चढाई को चारों धाम में सबसे कठिन चढाई गिना जाता है. अंत में हम यमुनोत्री पहुँच ही गए . ग्यारह बजे उत्तरांचल के राज्यपाल पहली पूजा के लिए आनेवाले थे . वे सब हेलिकोप्टर में आए थे .मन्दिर के ठीक बाहर गर्म पानी का तप्त कुंड सूर्य कुंड था जिसकी अभी सफ़ाई हो रही थी .यहाँ पर भाप निकालता पानी नजर आता है जिसमे आप चावल पका सकते है और पुडी तल सकते है .हमने नजरों से देखा था .कुदरत का एक और करिश्मा भी यहाँ है . यमुना नदी का मुख्य प्रपात तो अभी बर्फ की तरह जमा हुआ ही था किंतु उससे सिर्फ़ दस फीट के दूरी पर ही उबलते दिखते गर्म पानी का झरना बहता था जिसमे सभी स्नान करके दर्शन के लिए जा रहे थे . पर इसके स्पर्श से हमे जलन बिल्कुल ही नही होती है .ये जगह ६ महीनों तक बर्फ से ही ढकी रहती है तब माताजी की मूर्ति को नीचे जानकीचट्टी ले जाकर पूजा की जाती है .हमारे सामने ही ६ महीने के पश्चात् मन्दिर के द्वार खुले . दर्शन से हम धन्य हो गए ...ये जगह समुद्रतल से १०००० फीट की ऊंचाई पर है . अगर आप ब्लड प्रेशर या एनिमिक है तो दवाई का इंतजाम साथ ही रखे . यहाँ पर साँस में लेने वाली ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम होती है इसी लिए कभी कभी साँस लेते हुए दिक्कत पड़ सकती है .यहाँ पर कुछ हल्का फुल्का खाते रहना चाहिए ..अब अचानक ही साफ दिखनेवाला मौसम बदलने लगा . बादल घिरने लगे . हम दर्शन कर चुके थे इस लिए लौटने लगे . वापसी में थोड़े दूर पहुँचते ही शुरू हो चुकी थी बर्फ की बरसात .बर्फ के टुकड़े मेरी ढंकी हुई कंडी पर छोटे छोटे पत्थरों के समान महसूस हो रहे थे .मज़ा तो मेरे पतिदेव और बेटी ने खूब लिया इस बरसात का . दोनों रास्ते में बर्फ के गोले बनाकर खेलते हुए ही आए . आप सिर्फ़ कल्पना ही कीजिये हमारा कितना सुंदर अनुभव रहा होगा ये!!!! हम लौट चले थे जानकीचट्टी सुंदर और थोड़े भयानक भी लगने वाले रस्ते से गुजरकर !!!!!!!!अब जायेंगे ....थोड़ा और इंतज़ार कर लो ...यात्रा अभी जारी है ...!!!!
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
वाह जी वाह मजा ही आ गया। अच्छी जानकारी, इतने सुन्दर और सटीक लेखन के लिये। बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंbadhiya lekh... rochakata ke saath...
जवाब देंहटाएंarsh
very nice! i went there years ago and am planning to go again. I salute the travelling spirit of Gujarat , W.Bengal. and M.P. ! we r all indians ,but people of these states truly like discovering destinations .
जवाब देंहटाएं