"सभी हालातको मद्दे नजर रखते हुए और दोनों पक्षों की दलीलें सुनते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची है की श्रीमती नीला कामदार जो एक हालात का शिकार हो चुकी थी और एक हादसे में उनके हाथों उनके पति का ही कत्ल हो गया है । लिहाजा ये अदालत श्रीमती नीला कामदार को बा इज्जत बरी करती है ."॥
नीला पथराई हुई आँखों से उस कठघरे में ही खड़ी रह गई ।लेडी कोंस्तेम्बल ने आकर उसकी हथ कड़ी खोल दी .नीला के जहन में बस एक ही सवाल गूंज रहा था ...उसके लिए तो सजा तय हो ही चुकी है चाहे वो जेल की चार दीवारों में हो या बाहर की इस दुनिया में ....वह धीरे धीरे कदम बढाती हुई पैदल ही अपने घर पहुँची .घर !!!!?? अब ये घर कहाँ रह गया था ?मासुमी उसकी तेरह साल की बेटी तो इस दुनिया में ही नहीं रही थी . और सुजीत -उसका पति -जिसे वह अपने ही हाथों से मौत के घाट उतार चुकी थी .उखड कर गिरे हुए रंगों की परतें उसके जीवन की परत भी एक के बाद एक खोल रही थी .दरवाजे को खाली ही टिका कर वह पलंग पर घंटो तक गुमसुम सी बैठी ही रही ...
सुजीत के साथ भागकर शादी करने के बाद दोनों बनारस से मुम्बई आ गए थे ।भाग्य से नीला को जल्द ही एक राष्ट्रिय कृत बैंक में नौकरी मिल गई .जोगेश्वरी में घर के बिल्कुल नजदीक . सुजीत कोम्प्यूटर इंजिनियर था . थोड़े संघर्ष के बाद उसे भी नई मुम्बई में अच्छी नौकरी मिल ही गई .शादी के तीसरे साल उनकी जिन्दगी में पहला फूल खिला मासुमी नाम का ॥मासुमी जब दस साल की हुई तब सुजीत की कम्पनी बंद हो गई और उसकी नौकरी छुट गई .बहुत कोशिश के बावजूद उसे दूसरी नौकरी नही मिल पाई .बेरोजगार सुजीत को हताशा , शराब और जुए की आदत ने घेर लिया .नीला की सारी तनख्वाह उससे छिनी जाने लगी और उसे शराब और जुए की भेंट किया जाने लगा . अब तो माँ बेटी को भी पिटने का सिलसिला शुरू हो चुका था ....
नीला नए ज़माने की औरत थी । उसने नारी निकेतन का सम्पर्क करके पुलिस में अपने पति के खिलाफ रपट लिखवा दी . पति को अपने घर से बाहर निकाल दिया .पुलिस के डर से सुजीत अब उनको परेशान नहीं कर पाता था .दोनों माँ बेटी अब उनके अपने फ्लैट में रहते थे .एक बरसात की रात थी .....बिजली गुल हो चुकी थी .अंधेरे में नीला रसोईघर में पानी पीने के लिए गई . उसी वक्त खिड़की के रस्ते शराब के नशे में धुत्त कोई उनके घर में घुस गया . अचानक नीला ने मासुमी की चीख सुनी .अंधेरेमें मासुमी को उस ने अपने हाथों में जकड लिया था . नीला अंधेरे में ही किचन से बड़ा सा चाकू लेकर आई और उस अजनबी को पीठ पर लगातार दस बारह वार कर दिए .थोड़ा छटपटने के बाद वह शांत हो गया .पर उसके हाथ में मासुमी की गर्दन आ गई थी .जिस पर अत्यधिक दबाव आने पर मासुमी की जीवन लीला भी समाप्त हो चुकी थी .तकरीबन एक घंटे के बाद जब बिजली आई तो नीला की जिन्दगी में हमेशा के लिए अँधेरा हो चुका था .मासुमी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थी और खिड़की के रस्ते घुसने वाला शराबी और कोई नही पर उसका पति सुजीत ही था .जिसे वह मौत के घाट उतार चुकी थी ....
प्रायः नीला ख़ुद ही पुलिस थाने में हाजिर हो गई । नीला को दूसरे दिन हालात के बलबूते पर जमानत भी मिल गई .केस चला . बैंक से उसे सस्पेंड कर दिया गया .नीला के सारे पहचान वालों ने उसीके पक्ष में गवाही दी थी .और वह बा इज्जत बरी हो भी गई .बैंक ने पूर्ण सहानुभूति के साथ उसे पुनः नौकरी पर रख लिया.लेकिन अब क्या ????!!!ये सवाल उसको परेशान कर रहा था .....
नीला ने मेनेजमेंट को कोई दूर दराज के इलाके में ख़ुद का तबादला करने की गुजारिश की । उसका तबादला उसीकी मर्जी से दार्जिलिंग में हो गया .नई जगह नए लोग और प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य !!! दिल के घाव जरा जल्द ही भरने लगे .नीला के घर पर रोज सुबह जमुना घर का सारा काम करने के लिए आती थी .उसकी आठ नौ साल की बेटी भी उसके साथ आती थी .उसके साथ बात करते पता चला की उसके दो बच्चे थे .बेटा स्कूल में पढ़ता था .पर आमदनी कम होने के कारन बेटी का दखिलाल नहीं हुआ था .एक सुबह नीला अपने छोटे से बागीचे में नए पौधे लगा रही थी .छोटी सी श्रीना -जमुना की बेटी साथ में आकर अपनी छोटी छोटी आँखों से सब गतिविधियाँ देखने लगी .नीला ने उसे पानी देना सिखाया .नीला के साथ श्रीना थोड़ा थोड़ा खुलने लगी . अपनी प्यारी सी आवाज में जब वह नीला के साथ बातें करती तो नीला को अपनी मासुमी की याद बरबस सताने लगती.नीला ने एक बात पर गौर किया की श्रीना अपनी उम्र के बच्चो के मुकाबले बहुत ज्यादा होशियार थी . नीला ने जमुना से कहकर उसे सुबह में जल्दी उसे अपने पास बुला कर पढाने का शुरू किया ....
एक साल में तो उसने तीसरी कक्षा के समकक्ष बच्चे की पढ़ाई पुरी कर ली । वहां के स्कूल में प्रधानाचार्य से मिलकर दूसरे साल नीला ने उसका स्कूल में दाखिला करवा दिया . जमुना और उसके पति को समजा कर उसके सारे खर्च की जिम्मेदारी नीला ने अपने सिर ले ली .नीला को अपने जीवन का जैसे मकसद ही मिल गया !!!!स्कूल की हर प्रवृत्ति में श्रीना ही अव्वल आती थी . पढ़ाई में भी उसका कोई मुकाबला नहीं कर पाता था .श्रीना तमांग अपने स्कूल का ही नहीं दार्जिलिंग शहर का सितारा बन चुकी थी .खेलकूद में उसने अपने राज्य पश्चिम बंगाल का राष्ट्रिय स्तर पर कई बार प्रतिनिधित्व किया और कई मैडल भी जीते . बड़ी होकर वह एक होनहार डॉक्टर बन गई .....
उसने देश की सेवा का प्रण लिया । वह सेना में भरती हो गई . उसने बाकायदा सैनिक प्रशिक्षण भी ले लिया .सियाचिन की सरहद पर एक बार उसने अकेले ही दुश्मनों का मुकाबला करते हुए बंदूक उठाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया . उस बहादुरी के लिए उसे "वीर चक्र " से नवाजा गया .....
टेलीविजन पर यह दृश्य देखते हुए आंसू पोंछ रही नीला से उसकी पड़ोसी श्रीमती शर्मा कहने लगी ," नीला ,अगर तुमने श्रीना को बचपन में गोद ले लिया होता तो आज वह तुम्हारी ही बेटी कहलाती ।और तुम्हारा सर फक्र से ऊँचा हो जाता न ?!"नीला ने कुछ देर बाद बड़ी ही शान्ति से जवाब दिया ," किसीभी पौधे को उसकी जड़ से उखाड़कर अपने बगीचे में लगाना मुजे उचित नहीं लगा .बस मैं तो उसे ठीक से सिचना ही चाहती थी और वही मैंने किया . मैं तो उसकी किस्मत का एक निमित्त मात्र ही हूँ .उसके माँ बाप की खुशी तो मुझसे कई गुनी अधिक है .और श्रीना ये सब कर पाई क्योंकि वह अपनी जड़ों से जुड़ी रही थी ......
"दूसरी सुबह नीला के घर के आँगन में एक जीप आकर खड़ी हुई .आर्मी के युनिफोर्म में दो फौजी उसके घर के दरवाजे पर खड़े होकर नीला को सलाम कर रहे थे . एक थी डॉक्टर श्रीना तमांग और दूसरे थे डॉक्टर शिवम् जोशी ..एक सजीला नौजवान जो श्रीना का होने वाला मंगेतर था ....दो घंटे के बाद रुखसत लेते वक्त शिवम् वहां पर दो पल अकेला ही रुक गया .उसने नीला का हाथ चूमकर कहा ,"माँ ,मैंने बचपन में अपने माँ बाप को खो दिया था .शादी के बाद आप हमारे साथ ही रहोगी. लेकिन श्रीना की नहीं मेरी माँ बनकर ....वादा ??!!!"एक खिलाती हुई हँसी की गूंज एक सुनहरे वादे के साथ फिजा में बिखर गई ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
आपकी लेखन शैली प्रभावशाली है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है।
लिखते रहिये
dukh ke baad hi sukh aata hai,bahut achhi rahi kahani,zindagi ke utarchadav liye,badhai.
जवाब देंहटाएंभावः विहोर कर देने वाली कहानी का सार "" किसीभी पौधे को उसकी जड़ से उखाड़कर अपने बगीचे में लगाना मुजे उचित नहीं लगा .बस मैं तो उसे ठीक से सिचना ही चाहती थी और वही मैंने किया ""
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली कलम!
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चाँद, बादल और शाम
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