20 मार्च 2009

तुम्हारे चंद शब्द .....!!!!


तुम्हारे चंद शब्द एक नयी दास्ताँ लिख जाते है ,
चलो आज तुमभी सुन लो जो मेरे लब आज कह जाते है :

शब्द कहते कहते रुके है आज कलमकी नोक पर ,
अल्फाज़ आकर ठहरे हुए है लबोंकी दहलीज़ पर ....
वो कोमल हाथके स्पर्शमें भी है एक अनसुनी कहानी ,
पलकों पर आकर रुक गया है जो पढ़ लो प्यार का इज़हार .......

सदा -ऐ खामोशी सुनकर भी बना है एक अफसाना ,
याद है वो उल्फतका मंझर और वो मौसम भी सुहाना ,
हौले हौलेसे कदम रखते हुए आपकी पायलका वो खनकना,
जैसे कह रही है हमें आप यूँ ही हमारे रहना .......

चलो आज मिलबैठकर कुछ अफ़साने आपसे सुनते है ,
गुजरी थी कैसी सितारोंसे भरी शाम वो किस्से भी सुनाते है ,
ताबीर देखते है आँखोंमें आपकी हम हमारे ख्वाबोंकी ,
चलो इसी वक्त मांग लेते है आपसे उम्रभरके लिए आपका साथ भी ........

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीति जी,

    सबसे पहले तो मैं यह कहूंगा कि आप हिन्दी और उर्दू का खासा संगम कर पाती हैं.

    "ताबीर देखते है आँखोंमें आपकी हम हमारे ख्वाबोंकी ,
    चलो इसी वक्त मांग लेते है आपसे उम्रभरके लिए आपका साथ भी "

    दिल को छूने वाले भाव भरी पंक्तियों के लिये बधाईयाँ.

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. सदा -ऐ खामोशी सुनकर भी बना है एक अफसाना ,
    याद है वो उल्फतका मंझर और वो मौसम भी सुहाना ,
    हौले हौलेसे कदम रखते हुए आपकी पायलका वो खनकना,
    जैसे कह रही है हमें आप यूँ ही हमारे रहना .......

    waah romani ehsaas,dil khush ho gaya,sunder.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रीति जी,
    मैने पिछली कविता पर टिप्पणी में लिखा था कि आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे होते हैं परन्तु शब्दों के चयन और लय के आभाव में रचना कमजोर पड जाती है.. आपकी रचना के पहली छ: पंक्तियों को मैने आपके शब्दों में ही फ़िर से लिखा है.. देखिये कुछ अच्छा बन पडा है क्या... मुझे सूचित अवश्य करें.. यह आलोचना नहीं सुझाव है.. बुरा मत मानियेगा...


    लफ़्ज तुम्हारे लिखें इक नयीं दास्तां
    आज सुन लो मेरी जुंबा पर क्या है
    बात होंठो पर रुकी रुकी सी
    अश्क पलकों पर ठहरे ठहरे
    छुअन इक अहसास बन कर
    कहो तो ये दास्तान क्या है

    जवाब देंहटाएं
  4. tumhare chand shabd ek nayi dastan kah jate hain..........bahut sundar panktiyan.

    जवाब देंहटाएं

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