27 फ़रवरी 2009

आज कोरे कागजको एक ख़याल आया ...

सूरजकी रोशनी थी आगमें झुलसती ,

चीरकर उसे कभी किसीने भीतर झाँका नहीं .....

नितांत अँधेरा गहरी तन्हाईके गर्भमें समाया था ,

क्या वो सूरज था या उसका साया था ???

अय दीपक ,सूरज के भीतर आज समां जाओ ,

उसे भी आज अपनी रौशनी से रोशन करते जाओ .....

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एक कोरे कागज़का खयालथा कभी उसे कुछ लब्जोंका साथ ,

कलम थिरक जाती थी स्याहीमें डूबी हुई ,

आज तन्हाई में उसे कोई ऐसे ही याद आ गया ,

थोडा सा वो मुस्कुराया ,थोडा सा फिर रो दिया .....

आज एक कोरे कागज़ को एक ख़याल आ गया .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. थोडा सा वो मुस्कुराया ,थोडा सा फिर रो दिया .....
    आज एक कोरे कागज़ को एक ख़याल
    bahut khubsurat

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut gahri soch ............sach sooraj ko bhi dard hota hai wahan bhi tanhayi hai magar kaun janna chahta hai.

    जवाब देंहटाएं

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