कारे कजरारे बालों की ये लट,
चान्दसे चेहरे को छू गई ॥,
उस लट को तुम्हारी ऊँगलीने
छूकर जब चेहरेसे हटाया ॥,
मन कुछ यूं बोल उठा यूं ,
लो पूनम का चाँद निकल आया .....
आंखोंके समुन्दरमें ,
उछल रही थी सपनोकी लहरें ऐसे ,
लहरोंके उस खुमारको जैसे तुम्हारी चिलमन पलकोंकी,
आँखों पर गिरकर संभाल रही थी .....
सांसोकी गर्माहटसे ,
तुम्हारे कमल की पंखुडियोंसे ये लब ,
शर्माकर यूं लाल हुए
और गूंजे उसमें से उठकर जो तुम्हारे अल्फाज ,
तो लगा जैसे विरानियोंमें कोयल हो कुक उठी .....
ए अजनबी हसीना ,
ठहर जाओ मेरी जिंदगीमें हमेशा के लिए .....
एक सपना बनकर ही ,
तन्हासी रातोंमें ,
ए जिंदगी तुमसे ,
कुछ गुफ्तगू करनी है ......
प्रीति जी आप कवितायें बहुत अच्छे से सी (लिख) लेती हैं :)
जवाब देंहटाएंप्रेमरस की यह कविता खूब लिखी है आपने.
बहुत ही सुदर लिखा ...बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर काव्य है
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चाँद, बादल और शाम