जब आस पास मेरी कुछ भीड़ जम सी गई ,
सांसोमें मेरी घुटनसी हो गई ....
कुछ रिश्तोंको जो पुराने हो चुके थे ,
उन्हें मैंने फ्रीज़में जमने रख दिए ...
जमें नहीं वो बर्फ से ,
रखते ही फ्रीजमें वो पिघलकर बह गए .....
उन रिश्तोंको मैंने आगमें डाला ,
राख बनकर वह मेरे सामने पड़े रहे ...
राखको बहा दिया दरियामें
और हल्का सा होने पर घर पर लौट आया .....
ना वो जमे ,ना राख हुए ,ना वो दरिया में बह गए ,
उन रिश्तोंको मैं दिलसे न निकाल पाया था ......
रातको तकिये पर चैनसे न सो पाया ,
बहते हुए अश्कोंमें मैंने उन रिश्तोंको जिन्दा ही पाया ........
अद्भुत रचा...ग़ज़ब के भाव..
जवाब देंहटाएंनीरज