बचपन ...!!!
कैसा भी हो पर है हर एकके जीवन का ये खुबसूरत सा लम्हा होता है ..आज बात कर रही हूँ बचपन की ..मेरे अपने कुछ पन्ने बचपन के बांटना चाहूंगी ...पर ये लिखने से ज्यादा ये महत्त्व उसका होगा जो मैंने नहीं लिखा ....आज के बच्चे ,आज के युवा के स्ट्रेस का कारण भी है और उपाय भी ......
मेरे मानसपट पर अंकित है ये युग बचपनका जिस पर राखी जाती है ये जिंदगी की इमारतकी नीव ॥!!!
लगभग तीन सालके बाद की यादे कुछ याद है ..वडोदरा के एक इलाके में रहने के बाद मेरे पिताजी को ओ एन जी सी कालोनी में मकान मिला .यहाँ से मैंने अपनी स्लेट पर १,२,३ और क,ख ,ग लिखना सिखा ।
हमारे पास पड़ोस में सिर्फ़ हमारा परिवार ही गुजराती था । पास पडौस में कश्मीरी से कन्या कुमारी तक के लोग आते जाते रहे ..तबादले के तहत ...पञ्जाबी ,बंगाली लोगों के साथ रहना और उनके तौर तरीके ,त्यौहार वगैरह जानने का मौका मिला ..मुझे घर में और स्कूल में गुजराती भाषा का प्रयोग करना होता था .घर के आसपास मैंने हिन्दी हो बोली है ..इस लिए गुजराती और हिन्दी लगभग साथ साथ ही पढ़नी लिखनी सीखी ..इस कारण आज भी जब मैं हिन्दी बोलती हूँ तब मुझे कोई गुजराती हूँ ऐसा नहीं मान सकता ।
पड़ोसमें बंगाली आंटी जब मछली बनाती तब उसे कटते वक्त मैं उसे देखती उसके बारे में पूछती .हालाँकि हम शुध्ध शाकाहारी थे पर मुझे इसे देखने की बहुत मजा आती ..हमारी कालोनी बनी उससे पहले वहां खेत हुआ करते थे । साँप ,नेवले ,छिपकली ,स्यार तो यूँही देखने मिल जाते ..मुझे साँप को देखने का मजा आता था ..अकेली होती तो उसके पीछे पीछे चलती रहती ...घर में ये शैतानी किसीको नहीं बताती .मैंने एक इंच से लेकर १० फिट तक के साँप देखे है .ऊँची घास में चलना तितली पकड़ना ,छुपन छुपी खेलना ,पेड़ पर चढ़ना ,फुल तोड़ना ,बारिश में पेड़ की डालिया हिला कर पानी से खेलना , भरे हुए पानी में छापक छाई खेलना , गित्त्ते ,कंचे ,गुल्ली डंडा ,यहाँ तक की मेरी मम्मी के कपड़े पीटने वाला डंडा लेकर क्रिकेट खेलना ......मस्ती ही मस्ती .....सब बच्चे ऐसे ही ...साथ में बस में बैठकर स्कूल जाना ..कभी देर से बस मिले या ना मिले तो पैदल तीन किलोमीटर तक पैदल जाते ताकि देर से आने की सजा न मिले और सीधे क्लास में जाकर बैठ जाना ......
वेकेशनमें सूरत चाचा के घर जाना ..दीवाली हो या गर्मी की छुट्टी हर वेकेशन वहां ही गुजरा .सभी बहने मिलकर हुडदंग मचाना ,मम्मी से पैसे लेकर बर्फ के गोले खाना ,किराये पर सायकल लाकर सूरत की छोटी छोटी गलियों में सरपट दौड़ना और कभी कभी चोट लगा कर चुपचाप वापस आना ...एक दीदी अहमदाबाद से आती , मैं वडोदरा से जाती और दो बहने सूरत की ...स्कूल में हुए हर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आदान प्रदान यानी की पुरे दिन नाटक और नृत्य करते रहते ...चाची चिल्लाती तो भागकर चले जाना ..और फ़िर थोडी देर में शुरू ...आज ये याद करते हुए आँखे भर आती है ॥
सच कहूँ तो दुनिया भर की दौलत भी आ जाए तो भी अपना बचपन को कोई वापस नहीं खरीद सकता ।
इम्तिहान क्या होता है वो चौथी कक्षा तक मुझे पता ही नहीं था .पर अपने पाठ्यक्रमकी सारी पुस्तकें पढने की बहुत मजा आती थी ..मैंने स्कूल में बारहवी कक्षा तक हमेशा प्रथम क्रमांक ही कायम रखा पर मुझे याद है जब मैं आठवी कक्षामें थी तब दुसरे इन्टरनल एक्जाम में एक शादी में जाने के कारण चार मार्क्स से मेरा दूसरा रेंक आया .टीचर्स रूम में भी उसका चर्चा हुआ .एक सर ने मुझे ताना दिया : नीचे उतरना शुरू हो गया ? मैंने कहा सर अभी वार्षिक परीक्षा बाकी है ...मैंने तय किया पुरे चालीस मार्क्स से अपना स्थान वापस ले लुंगी ...वार्षिक परीक्षा में पुरे चालीस मार्क्स से मेरा प्रथम क्रमांक पुनः प्राप्त कर लिया ..ये था मेरा अपने आत्मविश्वास से पहला सामना .... पढ़ाई के साथ हमेश वक्तृत्व स्पर्धा ,निबंध स्पर्धा , सुगम संगीत की स्पर्धा हमेशा हिस्सा लेती और इनाम भी जरूर से जीतती । अपनी स्कूल को मैंने शहर कक्षा तक राज्य कक्षा तक भी प्रतिनिधित्व किया .सभी शिक्षकों की लाडली थी ...घर जाकर पढ़ाई करना ...मम्मी पापा को कुछ कहना नहीं पड़ा ...
मेरा पढ़ाई का तरीका कुछ अलग था ...नियमित गृहकार्य करती थी ..और परिक्षाके अगले दिन पढ़ाई करके परीक्षा देती थी ...बारहवी कक्षा में भी मैंने न कोई ट्यूशन लिया न कोई कोचिंग क्लास गई ...फ़िर भी बारहवी कक्षा कोमर्स प्रवाह में मेरे ७२% के साथ अपने शहर में तीसरा स्थान पाया । उस वक्त ७८% से राज्य में प्रथम क्रमांक आया था ...ये बात है १९८० की ...
पढ़ाई के साथ मैं वडोदरा के आकाशवाणी के रविवार को आने वाले बच्चो के कार्यक्रम में भी हिस्सा लेती थी .उसकी संचालिका ने मुझे वहां का ऑडिशन टेस्ट देने के लिए प्रोत्साहित किया । जब ये परीक्षा थी उस दिन मेरी मम्मी ने देखा की वहां खूब पैसे वाले लोगोंके बच्चे कार में बैठ कर आ रहे थे ...हम बिल्कुल साधारण घर के थे ...मम्मी को उम्मीद नहीं थी ...पर ये टेस्ट मैंने पास कर लिए और ६ साल तक नाटकमे भाग लेती रही ...वो थी मेरी पहली कमाई थी ......
कुछ ऐसा भी होता है बचपन में की वो यादें हमें दुखी कर देती है ...पर अगर खुश रहना हो तो ये यादें भुला कर अच्छे किस्से को याद करो और खुश रहो ये मेरा उसूल रहा है ....
ऐसा था मेरा बचपन ........
आपको भी मेरे साथ बहुत कुछ याद आ रहा होगा ...उसे प्यार से याद कर लो आज ...आज कलके सुनहरी यादों में जी लो .....
waah bahut achhi yaadeinhum bhi bhig liye bachpan mein sundar
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे।
जवाब देंहटाएंbahut acchi yaaddd hai
जवाब देंहटाएंBahut yaad aati he bachpan ki
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