बेसुध हो जाते है ,होश भी कुछ खो से जाते है ..
अल्फाज़ हमारे उस वक्त जैसे सो जाते है ,
सपने भी पलकोंसे वापस चले जाते है ...
ये करिश्मा तेरी कलम का ही है महकती है गुलजार सी जो ,
हम शब्दोंमें लिपटे अफसानोंमें हमारी दिलरुबाका दीदार करते है
होश खो जाते है जब तसव्वुरसे तुम्हारे तो तुम्हे तक़दीरसे मांग कर देखते है ...
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जज्बात हममें छुपे हुए ऐसा रंग लाते है ,
दबी हुई ख्वाहीशोंको कलमकी स्याही बनकर उजागर कर जाते है .
कभी कभी किसीका साथ होते हुए हम भीड़ में भी तनहासे हो जाते है ..
तन्हाईके आलमसे गुजरते हुए कभी हम यादों के मेलेमें घूम आते है ...
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आंखोमें कुछ सपने सो रहे है जगाना नहीं ,
नींद तुम्हें थोडी देर बाहर जाना नहीं ,
चलो नींद आज इन सपनोंको मेरे पास छोड़ जाओ ,
तुम्हे गर जाना है तो रात कुछ और सपनोंको साथ लेकर आ जाओ ................
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निंदिया आना नहीं पांव तोरे पड़ूं
जवाब देंहटाएंरैना आना नहीं पांव तोरे पड़ूं
..अच्छी रचना.
बहुत बढ़िया रचना ..बधाई.
जवाब देंहटाएंकभी कभी किसीका साथ होते हुए हम भीड़ में भी तनहासे हो जाते है ..
जवाब देंहटाएंकितनी सच्ची बात कही है आपने...बहुत खूबसूरत रचनाएँ लगीं आपकी...बधाई
नीरज
ये करिश्मा तेरी कलम का ही है महकती है गुलजार सी जो ,
जवाब देंहटाएंहम शब्दोंमें लिपटे अफसानोंमें हमारी दिलरुबाका दीदार करते है
-बहुत बेहतरीन बात कही.