सहरसे शाम तक मशरूफीका आलम था ,
शाम से रात तक खुशफहमी का आलम था ,
रात जवां होते ही अंधेरेने कुछ उजागर किया ,
तब समज पाया की इस जिंदगी में सिर्फ़ तन्हाई का आलम था .....
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किसीकी चाहतमें फ़ना होना एक गुनाह है ,
किसीकी चाहतको ठुकराना एक गुनाह है ,
किसी की चाहत को चाहना एक गुनाह है ,
किसीकी चाहत में चुप रहना भी गुनाह है ....
तो ....
चाहत जो गुनाह है तो उसे खुदा क्यों समजा ?
चाहत जो फ़ना हो जाना है तो उसे उम्र क्यों समजा ?
चाहत जो बंदगी है तो उसके धनीको काफिर क्यों समजा ?
चाहत जो जिंदगी है तो उसे उसे आखरी मकाम क्यों समजे ???
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bahut khubsurat waah
जवाब देंहटाएंअच्छे सवाल उठाए हैं।सुन्दर लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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गुलाबी कोंपलें