23 जनवरी 2009

तुम्हारे लिए ..........



तुम्हारे लबों पर जीतकी हँसी देखने ,

चलो आज मैं हार बन जाती हूँ ........

तुम्हारे घरमें एक सूरज रोशन करने के लिए

चलो मैं आज अँधेरी रात को अपनाती हूँ ....

तुम्हारे बुझे हुए उम्मीदों के दियोके लिए

चलो मैं आज एक दीपक बन जाती हूँ .....

तुम्हारे नासूर बने ज़ख्म बर्दाश्त नहीं मुझे ,

चलो मैं उन ज़ख्मों का मरहम बन जाती हूँ ...

तुम्हारे चेहरे पर छाते है जब गम घटा बनकर उसे बिखराने

चलो आज मैं सूरजसे चुराकर बादल बारिशकी बूंद बन जाती हूँ .....

तुम्हारे आँचलको भिगोकर उन बूंदोंसे

चलो आज मैं तुम्हारे सारे दर्द पी जाती हूँ .......

तुम्हारे होठोंको मेरी मुस्कान देकर

चलो आज तुम्हारे दर्दसे डूबी हुई एक ग़ज़ल बन जाती हूँ ......

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