31 जनवरी 2009

ये ही इश्ककी रिवायत है ...




खुशियों को जताने की ये कैसी अजीब सी रिवायत है ?

मुस्काते इन लबों के साथ क्यों अश्कों की इबादत है ?

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मोहब्बत पर मिलन या जुदाई की कोई शर्त नहीं हुआ करती,

मिलन होता नहीं हर इश्क की दास्तां का अंजाम ,

पर इतिहास के सफे पर लिखी गई हर दास्तां ,

अमर हो गई जो जुदाई के अंजाम पर ख़त्म हुई थी .......

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तुम्हारे ईश्कमें तुम्हारे ख्याल के बिन कुछ आया ही न था ,

एहसास को तुम्हारे हमारे दिल से कभी जुदा कर पाया ही न था ,

इश्क की खुशबू का आलम ये था की ख़ुद ब ख़ुद फैलती चली गई ,

बिना ताज के बनाये ही हमारी मोहब्बत की दास्तां सुनहरे सफों पर लिखी गई ...

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1 टिप्पणी:

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