खुशियों को जताने की ये कैसी अजीब सी रिवायत है ?
मुस्काते इन लबों के साथ क्यों अश्कों की इबादत है ?
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मोहब्बत पर मिलन या जुदाई की कोई शर्त नहीं हुआ करती,
मिलन होता नहीं हर इश्क की दास्तां का अंजाम ,
पर इतिहास के सफे पर लिखी गई हर दास्तां ,
अमर हो गई जो जुदाई के अंजाम पर ख़त्म हुई थी .......
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तुम्हारे ईश्कमें तुम्हारे ख्याल के बिन कुछ आया ही न था ,
एहसास को तुम्हारे हमारे दिल से कभी जुदा कर पाया ही न था ,
इश्क की खुशबू का आलम ये था की ख़ुद ब ख़ुद फैलती चली गई ,
बिना ताज के बनाये ही हमारी मोहब्बत की दास्तां सुनहरे सफों पर लिखी गई ...
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बहुत कोमल दिल छूती हुई रचना है
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