10 जनवरी 2009

इंतज़ार करके .....



जिंदगी तो चलती रही यूँ ही हमेशा ,

उसे परवाह नहीं थी तुम्हारा साथ हो न हो ...

बेपरवाह बेफिक्र ,

जिंदगी की हर फ़िक्र को धुएंमें उड़ा दिया ...

तुम साथ न आए तो भी मैं तो चलता चला गया ....


लेकिन तुम्हारे ख्याल को मैं पीछे छोड़ न पाया ,

वह क्यों मेरे साथ साथ ही आया ,

आगे भले निकल गया यूँ पर ख्याल ने तुम्हारे ,

मुझे रुकने पर मजबूर किया ......


अब इन्तजार कर रहा हूँ ,

मेरे दिल की सदा तुम तक पहुंचती भी है ?

अकेले मेरे कदमों की आहट कहीं तुमने सुनी भी है ???

साथ आओगी तो मेरा मुकद्दर समज लूँगा ....


ना आओ तो होगी मेरी तक़दीर .....

वह तस्वीर जो ख़ुद अपने हाथोंसे तोडी ,

हाथों से टुकड़े समेट रहा हूँ ,

एक टुकड़े की चुभनसे रंगे लहू भरे हाथ लेकर .....


आखिर आ गई मेरा सपना बनकर ,

आँखे थक गई जब इंतज़ार करके ...

1 टिप्पणी:

  1. लेकिन तुम्हारे ख्याल को मैं पीछे छोड़ न पाया ,

    वह क्यों मेरे साथ साथ ही आया ,

    आगे भले निकल गया यूँ पर ख्याल ने तुम्हारे ,

    मुझे रुकने पर मजबूर किया ......


    bahut hi bhaavuk kavita..acch alikha hai...

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