3 जनवरी 2009

उफ़ ये अदाएं ...!!!!!

मांगनेसे तो खुदा भी मिल सकता है तो ये रकीब क्या चीज है ?
तड़प हो गर कुछ पा लेने की तो ये खुशियाँ क्या चीज है ????
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दम तो भरते थे वो दोस्ती का हरदम ,
मायने भी दोस्तीके क्या वो समज पाए है ?
खफा हम हुए थे इसी बात पर उनसे
पर उफ़....ये शिकायत भी हम न कर पाए है .....
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खामोशियों की भी एक जबां होती है खूबसुरत,
हलकी हँसी होती है इन होठों पर और आँखों में शरारत ,
पलकोंकी चिलमन ढँक लेती है ये शोख अदाको ,
और फ़िर वो हमें खफा समजे जाते है बस यूँही .....

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