प्रिय गांधीजी,
तसवीर आपकी जब भी देखती हूं,
आप हमेशा क्यों हंसते नजर आते हो ??
लोग आपका मजाक बना चूके है जब,
और ये आप है की उनकी सोच पर ही हंसते जाते हो......
लाखों लोगोके समर्पण पर बनी
हमारी आजादीकी ये ईमारत है .....
दिमत खा रही है आपके आदर्शोंको जब ,
सिर्फ किताबमें रहे उन उसुलोंसे दिमतका पेट तो भर रहा है.......
आप कल भी हमारे करीब थे और आज भी करीब ही है,
कल हमारे आदर्शोंमे तो आज सिर्फ हरी हरी नोटोंमें.........
सत्यमेव जयते एवं अहिंसा परमो धर्म .....
ये राजमार्ग पर चलकर आपने थी आजादी दिलवाई.....
लेकिन सिर्फ " अ"ने सिध्धांत जरा सा बदल लिया है,
तो अब है असत्यमेव जयते एवं हिंसा परमो धर्म...................
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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बहुत बढिया लिखी है रचना।बधाई।
जवाब देंहटाएंआप कल भी हमारे करीब थे और आज भी करीब ही है,
कल हमारे आदर्शोंमे तो आज सिर्फ हरी हरी नोटोंमें.........
एकदम सटीक!
ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है प्रितीजी.
जवाब देंहटाएंahut sundar likha hai....jismain kuch sach or kuch jhuth chhupa hai....
जवाब देंहटाएंJay Ho Mangalmay ho....