बुआ आई। घरका माहौल देखा। वो समज गयी की कुछ गरबड़ जरूर चल रही है। रात वो दादी के कमरे में सो गयी। दादी से पूछा क्या हुआ है ?? दादीने सारी बात बताई। बुआ चुपचाप सुनती रही। जब दादी का बोलना ख़त्म हुआ तब बोली : फिर वही मंजर !!! माँ ,अब वो जमाना नहीं रहा।
दादी बुआ को डांटते हुए बोली : तू अपने संसार में ध्यान रख। इधर की बातमे पड़ने की जरुरत नहीं तुम्हे।
बुआने कहा : माँ मैं भी पढ़ना चाहती थी पर आपने ऐसे ही मेरी जबरन शादी करवा दी थी। आपका दामाद कुछ खास पढ़ा लिखा नहीं था और पैसे बहुत थे वो देखकर मेरी शादी कर दी। लड़का बाप बनने की क्षमता नहीं रखता था वो बात शादी के बाद पता चली। मैं रोती बिलखती घर आई तो आपने मुझे कहा अब ये तुम्हारा घर नहीं वो है और वहीँ से तुम्हारी अर्थी उठेगी। मुझे मेरे नसीब पर छोड़ दिया। हमारी माली हालत बिगड़ गयी क्योंकि उनको उनके अपनोने ठग लिया और हमें रस्ते पर निकाल दिया था। क्या तुम सब भूल गयी ??? तुम कितना रोती थी पर मेरे घर आने पर तुम्हे आपत्ती हुई थी। फिर दोजख की जिंदगी जीते जीते वो भी चल बसे और मैं एक रूम किराये पर लेकर सिलाई कढ़ाई से कमाने लगी ...तुमने मुझे पढ़ाया होता तो ये मेरी हालत नहीं होती।
दादी मुंह फेरकर सो गयी . दूसरे दिन मेरी दीदी को बुखार था। बुआ कमरे में आई। दीदी उनको लिपट कर रोने लगी। बुआ उन्हें पसवार रही थी। घरमें मैं दीदी को हालत समझती थी पर लाचार थी।
रात पापा घर पर आये। टी वी पर एक शो चल रहा था जिसमे यु पी एस सी में टॉप करने वाली एक डिफरेंटली एबल लड़की का साक्षात्कार चल रहा था।
बुआ जानबूझ कर बोली : हर किसी को ऐसी होशियार संतान कहाँ मिलती है और जिसे मिलती है उसे कदर नहीं होती। बस बेटी है ब्याह दो तो काम पूरा हो। फिर बेटी की किस्मत !!! उसके सुख दुःख में खोखले दिलासे देकर अपना फ़र्ज़ पूरा करो। यहाँ पर तो लोग कितना कर्जा लेकर अब बेटीको विदेश भी पढ़ने भेजते है और जब लौटी है तो वही समाज उन्हें पलकों पर बिठाता है। और यहाँ तो एक नए पैसे का खर्च नही करना तो भी लोग उसी दकियानूसी समाज की रिवायत निभाने में लगे पड़े है। खुद की संतान को जब दुःख पड़ता है तब ये समाज आंसू तो नहीं पोंछता पर घाव कुरेद कर नासूर बनाता है। अपनी बेटी की दुर्दशा के लिए ऐसे माँ बाप को भी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
पिताजी गुस्से में चिल्लाये : अब अपनी बकवास बंद कर !!!! तुम क्या जानो की बेटी के बाप होने की तकलीफ क्या है ??
बुआ ने ठंडक से कहा : भले मैं माँ नहीं बनी पर एक बेटी तो थी। और अपने माँ और बाप के निर्णय की भोग भी बानी हूँ। जिस दिन बाप बनकर नहीं पर एक बेटी की नजर से सोचोगे तो तुम्हे मालूम होगा की बेटी भी संतान होती है जिसे अपने भविष्यको खुद चुनने का हक्क है !!!
और माँ की तरफ देख कर बोली :आप तो एक औरत हो भाभी क्या आप अपनी बेटी के भविष्य को यूँ ही अंधकार में धकेलने के पाप में सहभागी होगी ????
पिताजी और दादी गुस्से में अपने अपने कमरे में चल दिए और माँ बोली :………
दादी बुआ को डांटते हुए बोली : तू अपने संसार में ध्यान रख। इधर की बातमे पड़ने की जरुरत नहीं तुम्हे।
बुआने कहा : माँ मैं भी पढ़ना चाहती थी पर आपने ऐसे ही मेरी जबरन शादी करवा दी थी। आपका दामाद कुछ खास पढ़ा लिखा नहीं था और पैसे बहुत थे वो देखकर मेरी शादी कर दी। लड़का बाप बनने की क्षमता नहीं रखता था वो बात शादी के बाद पता चली। मैं रोती बिलखती घर आई तो आपने मुझे कहा अब ये तुम्हारा घर नहीं वो है और वहीँ से तुम्हारी अर्थी उठेगी। मुझे मेरे नसीब पर छोड़ दिया। हमारी माली हालत बिगड़ गयी क्योंकि उनको उनके अपनोने ठग लिया और हमें रस्ते पर निकाल दिया था। क्या तुम सब भूल गयी ??? तुम कितना रोती थी पर मेरे घर आने पर तुम्हे आपत्ती हुई थी। फिर दोजख की जिंदगी जीते जीते वो भी चल बसे और मैं एक रूम किराये पर लेकर सिलाई कढ़ाई से कमाने लगी ...तुमने मुझे पढ़ाया होता तो ये मेरी हालत नहीं होती।
दादी मुंह फेरकर सो गयी . दूसरे दिन मेरी दीदी को बुखार था। बुआ कमरे में आई। दीदी उनको लिपट कर रोने लगी। बुआ उन्हें पसवार रही थी। घरमें मैं दीदी को हालत समझती थी पर लाचार थी।
रात पापा घर पर आये। टी वी पर एक शो चल रहा था जिसमे यु पी एस सी में टॉप करने वाली एक डिफरेंटली एबल लड़की का साक्षात्कार चल रहा था।
बुआ जानबूझ कर बोली : हर किसी को ऐसी होशियार संतान कहाँ मिलती है और जिसे मिलती है उसे कदर नहीं होती। बस बेटी है ब्याह दो तो काम पूरा हो। फिर बेटी की किस्मत !!! उसके सुख दुःख में खोखले दिलासे देकर अपना फ़र्ज़ पूरा करो। यहाँ पर तो लोग कितना कर्जा लेकर अब बेटीको विदेश भी पढ़ने भेजते है और जब लौटी है तो वही समाज उन्हें पलकों पर बिठाता है। और यहाँ तो एक नए पैसे का खर्च नही करना तो भी लोग उसी दकियानूसी समाज की रिवायत निभाने में लगे पड़े है। खुद की संतान को जब दुःख पड़ता है तब ये समाज आंसू तो नहीं पोंछता पर घाव कुरेद कर नासूर बनाता है। अपनी बेटी की दुर्दशा के लिए ऐसे माँ बाप को भी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
पिताजी गुस्से में चिल्लाये : अब अपनी बकवास बंद कर !!!! तुम क्या जानो की बेटी के बाप होने की तकलीफ क्या है ??
बुआ ने ठंडक से कहा : भले मैं माँ नहीं बनी पर एक बेटी तो थी। और अपने माँ और बाप के निर्णय की भोग भी बानी हूँ। जिस दिन बाप बनकर नहीं पर एक बेटी की नजर से सोचोगे तो तुम्हे मालूम होगा की बेटी भी संतान होती है जिसे अपने भविष्यको खुद चुनने का हक्क है !!!
और माँ की तरफ देख कर बोली :आप तो एक औरत हो भाभी क्या आप अपनी बेटी के भविष्य को यूँ ही अंधकार में धकेलने के पाप में सहभागी होगी ????
पिताजी और दादी गुस्से में अपने अपने कमरे में चल दिए और माँ बोली :………
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