3 जनवरी 2013

वो सवाल का जवाब

 मेरी हथेली एक सैलाब बंद है ....हथेली गर्म हो जाती है ..और अन्दरसे लावा बहने लगता है ..सुलगती हुई आग  है जो मुझे नहीं जलाती ...क्या मेरा भीतर संवेदनशून्य तो नहीं हो चूका ???? डर - कसमसाहट बस भीतर ही भीतर ....कहाँ कौन चुक गया ??? कारण ढूँढने निगाहें दूर तलक जाकर वापस लौटने लगी है ....हर जहाँ पर गंदगी का माहौल नज़र आया ....नज़र भी थक गयी ..कहीं सुकून ढूँढा जाय .......
पर एक जगह बाकी रह गयी है .....फिर ख्याल आया ...मेरा भीतर ....मैंने उसे कभी कोई सवाल क्यों नहीं किया ?????? सारे सवालों के जवाब शायद वहीँ होंगे .........
= चलो सेलफोन छोड़ कर एक दोस्तके साथ गली के नुक्कड़ पर कटिंग चाय पी जाए ...उसकी उठती भापके साथ एक गर्म चुस्कीमें ताजगी का एक घूंट ....बहुत अच्छा लगा ...वो आधा घंटा .......पत्नीने आज पांव भाजी बनायीं थी ...पर आज स्वादिष्ट लगी ......
= टी वी का रिमोट नहीं ढूँढा .....दुसरे कमरे में गुड्डू और सोनिया पढ़ रहे थे ..गुड्डू तीसरी कक्षामे और सोनिया पहली कक्षामे ...उनके पास बैठकर उनकी पुस्तकें खोलकर देखी ...सोनिया ने गणित के सम्स के लिए माँ को आवाज लगायी तो मैंने उसकी नोटबुक लेकर उसे मदद की ...सबके चेहरे पर ताज्जुब देखा ...रातका खाना खाकर सबको स्कूटर बैठाकर आइस क्रीम खाने ले गया .....
शायद मेरा परिवार के साथ आज की शाम मैं सबसे ज्यादा खुश था ......
= क्रिसमस की छुट्टी में गाँवमें माँ पिताजी के पास परिवार सहित गया ....दोनों बच्चोको अपने बचपनकी सारी बातें बता रहा जैसे ये बीते हुए कल की बात हो ..अपने रघु चाचा और जमुना चाची ,हुसेन चाचा और आबिदा चाचीसे मिलाया ...भैंस का  ताज़ा दोहा गया दूध ,मक्खन और छाछ के स्वाद ,खेत से कटी ताज़ी सरसों की साग और मक्के की रोटीने बच्चोंको पिज़ा का स्वाद भुला दिया ....इस वक्त उन्होंने कहा अब तो हर वेकेशन गांवमे ..नीम पीपल की छाँवमें .....
= उनको याद  रह गयी मेरी माँ के कमरे में लालटेन के उजाले में सुनाई गई वो कहानिया जिसमे आसमान में चरखा चलाती बुढ्ढी नानी चाँद से बतियाती थी और एक राजकुमार उसकी  बेटी ब्याहकर ले जाता है ...उसमे राम भी आये ,हनुमान भी आये , भीम भी आये और कृष्णा भी आये .....कार्टून चेनल के सुपरमेन ,स्पाइडर में कहीं दूर रह गए .....
.................................................जब धुल उड़ाती हुई बस में बैठे तब मेरी माँ और मेरे पिताजी के चहेरे की हर जुर्रियों को ख़ुशीने भरकर लाल लाल कर दिया था ..........
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आज यहाँ पर वो सवाल का जवाब है जो हमारे भीतर तो है ...थोडा पीछे हटकर ...थोडा लक्ष्मी पूजा छोड़कर चला जाय तो फिर हर दिल में पनपता हुआ अकेलापन किसी भी बेहुदगी का लिबास पहनकर वहशी दरिंदा नहीं बन पायेगा .........

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