किसे कहूँ मैं तुम्हे याद किया मैंने कल ,
वो आंसूके बूंदको डिबियामें छुपाया मैंने कल ,
यादोंके बादल बनकर उमड़ उमड़ कर आते रहे कल ,
उसकी बूंदोंसे खुद का आशियाना भर दिया मैंने कल .......
तेरी वो कंचे गोटियाँ संदूकसे निकल रोया किये हम ,
तेरी गुडियाकी फटी चुनरियाको चूमा किये हम ,
वो लट्टूकी किल पर यादोंकी डोर लपेटा कए हम ,
वो जूठमुठ की चाय बनाकर कपको आंसूसे भरा किये हम !!!!!
तेरे पास भी मेरा छल्ला है की नहीं ???
मेरा गुड्डा जो ब्याहकर ले गए थे तुम अपने घर वो है की नहीं ???
वो वजन मशीनके टिकट इकठ्ठा कर बस कंडक्टर बनते थे तुम ,
वो मेरी टोपी पहनकर वो तेरे पास है की नहीं ????
वो टूटी हुई सायकल जिसे लेकर भागते थे हम
बाबुकी आम के बगीचेसे आम चुराकर वो सायकल है की नहीं ????
दीवालीके दिनमें हमने माँ से हमेशा जिद्द की की ये चीजें
मत देना कबाड़ी को ..ये तेरी दोस्तीके तोहफे है !!!
पर बीवीने न समजा था ये दोस्ताना
तो कल कबाड़ी कमा गया
और ....
और मेरी जिंदगी का खजाना मुझसे लुट गया !!!!
बस अब सिर्फ यादें ही बाकी है ...!!!!!!
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