4 अक्टूबर 2011

मैंने कुछ कहा नहीं ,

मैंने कुछ कहा नहीं ,
कहना चाहती भी नहीं ....
फिर भी निगोड़ी आंखे कहना मानती ही नहीं ,
बस दिलके हर सफे को खोलती रही है ......
आँख राज़ बयां करे वो नहीं चाह कभी ,
पलकोंको ढंककर पर्दा कर लिया ....
बस एक मुस्कराहट थी उनके चेहरे पर 
मेरी हर नाकाम कोशिश के लिए 
जो इश्क के इज़हार को छुपाने के लिए की मैंने .....

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