गुलदस्तेमें हँसते हुए फूलोंने
शिकायत कर दी मुझसे
डालीसे बिछड़कर हमारे
आंसू ही खुशबू बनकर बिखर गए फिजाओंमें ....
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इस मिटटीकी दीवारोंसे
उखड़ती हुई परतोंके नीचेसे
दिख रहे थे कंकाल वहां पर गुजरे हुए कल के
खंडहरसा ये कुछ कल एक घर था हँसता हुआ .....
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