25 मई 2011

तो आप है दार्जिलिंगमें ....

मेरी जिंदगीके सफ़र का सबसे अच्छा जो पड़ाव था चलो आज उसकी सैर करें ....
ये बात है सन २००३की ....हम वड़ोदरासे दिल्ही और वहांसे न्यू जलपाईगुडी पहुंचे ...दिल्हीमें छ घंटे का होल्ट था तो हम सामने लालकिला और चांदनी चोककी सैर करके आये ..फिर सफ़र शुरू हुआ यु पी और बिहारसे गुजरता रास्ता ....बिहारमें देखा की रिजर्वेशनकी धज्जियाँ उड़ जाती है ...और बर्थ पर पैर रखकर बन्दर की तरह बेलेंस करते टॉयलेट तरफ सफ़र कैसे होता है ....जब रातमें ट्रेन गुजरी थी तो कोई प्लेटफोर्म पर बत्ती नहीं .....डर भी लगता था ....दो रात और दो दिन के सफ़र के बाद रात साढ़े तीन बजे हम न्यू जलपाईगुडी पहुंचे तब राहत की सांस ली ...दो घंटे बाद दार्जीलिंग की ओर यात्रा शुरू हुई .....मेरी जिंदगी का सबसे स्वप्निल सफ़र .....
राजेश खन्ना की आराधना देखी होगी तो मेरे सपनों की रानी गाना याद होगा ...वही रास्ता ....कितने बड़े पहाड़ ....मसूरी की छोटी छोटी चोटियाँ यहाँ पर बहुत ही बड़े बड़े पहाड़में तब्दील हो चुकी थी ....और क्या बयाँ करें हम उन वादियोंकी खूबसूरती को !!!! शब्द कम ही पड़ेंगे ...रस्ते में बिलकुल छोटे छोटे पर बेहद सुन्दर आकर के घर ...वो छोटे छोटे खुबसूरत स्कुल जाते बच्चे ....बस टेढ़े गोलाई वाले रास्तो से गुजरता कारवां .....बाजु में छोटी तोय्य ट्रेन का रास्ता ....बाप रे दार्जिलिंग ....
भाई आप को चलने की आदत है ...आपकी पैर की पिंडिया वर्जिशकी आदत रखती है ??? यहाँ रिक्शा नहीं मिलेगी ...क्योंकि रास्ता सड़क भी एकदम सीधी ऊँचाइयों का है ...अरे पॉँच बजे सूरज सर पर आ जाता है और शाम को पॉँच बजे तो घना अँधेरा ...दो दिन तो ये सब एडजस्ट करने में ही जाता है ...वहां पर देखने वाली हर जगह पर आप को टेक्सी करके ही जाना पड़ता है ...शेरिंग में सौदा अच्छा रहता है ....कलिंगपोंग पासमे अच्छा स्थल है पर वहां नहीं जा पाए ...मशहूर टी गार्डन की सैर कर सकते हो ....तेनसिंह रोक पर रोक क्लाइम्बिंग का मजा भी लो ....वहां सुन्दर रोक गार्डन भी है जहाँ कुदरती झरनोंसे धोध बने है ...पर आप अगर मैदानी इलाको से गए हो तो चढ़ाई काफी तकलीफदेह सिध्ह हो सकती है ......खाना बहुत स्वादिष्ट नहीं मिलता ....वहां पर एक गौतम बुध्ध की मूर्ति काफी अच्छी है ...अगर मौसम साफ़ रहा तो वहां से कंचनजंगा शिखर भी दीखता है ....
वहां सूर्योदय देखने का रिवाज और मजा है ...सन राइज पॉइंट पर आपको सुबह साढ़े तीन बजे पहुंचना जरूरी है क्योंकि अक्तूबरमें वहां सुबह पौने चार बजे सूरज महाशय पधारते है ....वैसे हम गए उस दिन बरसात का मौसम था तो बादल की वजह से उदय देखना संभव नहीं हुआ ......सोचो होटलसे रात ढाई बजे निकलके एक घंटे का सफ़र करके खाली हाथ लौटना !!! खैर बीच रस्ते में आने वाले बगीचे और दो बौध्ध मंदिर खुबसूरत मंदिर देखे ....उस वक्त हम बिलकुल बादलों के बीच से गुजर रहे थे ...हमें बादल स्पर्श करके गुजर रहे थे ....कितना हसीं एहसास था बयाँ नहीं कर सकते उसका .......बादलों के बीच से गुजरना था या लगता था आज कल पांव नहीं पड़ते जमीं पर ....रस्ते टेढ़े टेढ़े जलेबी जैसे ....बस ये एहसास जहाँ में बाकी है .....
चार दिन वहां रहेनेके बाद एक अचानक की गयी सबसे खुबसूरत जगह की सैर करेंगे फिर एक बार ...अगले भ्रमण में ....आप चलेंगे ना मेरे साथ !!!!!

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