दूर तकती एक नज़र
पहुँच रही थी जहाँ तक
जमीं आसमांसे वहां गले मिल रही
हर डगर हर शहर हर शाम हर सहर .......
खारे जलका एक काफिला था फैला सरहदों के पार तक
उमंगें मौज बनकर
कनारे से टकरा रही थी श्वेत झागके परिधानमें
आसमां अपना अक्स देख मुस्कुरा रहा था नीला नीला
और उस सागरका मुख पार उड़ रही थी लहरों की चुनर हवा के झोंकोसे
ये अठखेलियाँ देखती हुई उसकी नज़रे
दूर दूर तक बहती रही कहती रही
" अय वक्त जरा सा रुक जा मेरे लिए
इस साहिलसे उस लहरों पर तेरे साथ चलने दे
एक कश्तीमें तु चाँद को लेकर आ जा
सूरजको अपनी गोदमें बिठाकर हम लायेंगे ...."
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
-
रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें