आज पितृ पक्षका आखरी श्राध्ध है .श्रध्दा का दिन ,तर्पण का दिन , अपने बुझुर्गोके प्रति नमन करने के दिन ....
पर कलसे हमारा गुजरात रात को जागेगा ...नौ रातो तक आपको देखने मिल सकती है यहाँ पर गरबा की हिलौर ...यहाँ बच्चे से लेकर सभी पर इसका खुमार चढ़ चूका है ...बाज़ार में पारंपरिक परिधान खरीदने के लिए खूब भीड़ जम चुकी है ...नए नए डिजाइन आ चुकी है ...उसके साथ उसके अनुरूप गहने भी ...जींस टी शर्ट पहनकर घुमने वाली लड़की चनिया चोली में नज़र आएगी ...गरबा ग्राउंड अपनी सजावट की चरम पर है ....
मा की मूर्ति रखी जायेगी ...और बड़े बड़े म्यूजिक सिस्टमसे सज्ज हो रहे ये मैदान ...चकाचौंध रौशनी ...
ये ऐसा माहोल है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है ...इसके लिए एक बार आकर यहाँ देखें तो पता चले की गुजरातमें बहु बेटियां रात देर तक गरबा खेलती है बिलकुल निर्भय होकर ...मा की भक्ति और आराधन का पर्व है ये ...यहाँ के गली चौबारे भी छोटे छोटे गरबे का आयोजन करते है .....
एक छोटे से मिटटी के मटके में छेद होते है उसमे दीपक प्रज्वलित करके रखा जाता है जिसे गरबा कहते है ...और जो गीत गए जाते है उस रूप में मा शक्ति की आराधना की जाती है और इस गीत को गरबा के नाम से प्रसिध्ध किया गया है ....प्राचीन और अर्वाचीन दो स्वरूप होते है इस के ....समूह में की जाती ये एक तरह से मा शक्ति की उपासना का ही रूप है ये .....
घर में भी एक टोकरी में ज्वार उगाकर उसे मिटटी के घड़े वाले गरबे के साथ प्रस्थापित किया जाता है और मा शक्ति का अनुष्ठान किया जाता है ...बहुत कठिन उपवास भी किये जाते है ...अष्टमी को हवन भी होता है ...नौवे दिन समापन होता है तब ज्वार और गरबा को नदी या जल स्थल में विसर्जीत किया जाता है ...मा के मंदिर में भीड़ लगी रहती है .....आप उसको इंटरनेट पर देखते हो और खुद आकर देखो इसमें बहुत फर्क होता है ....
और ये जरूर कहूँगी मेरे शहर वड़ोदरा का गरबा तो पूरी दुनिया में मशहूर है ...क्योंकि इसके प्रारूप में अभी भी प्राचीन गुजरात की महक है .........
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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