24 जुलाई 2010

बुँदे टिप ...टिप ...

मेरे घरके अटारी से शुरू होती है आसमां की सरहदें ......
मुठ्ठी बंद करके आसमां को उसमे कैद कर लिया है ...
खुलते ही मुठ्ठी आसमां पर लगाकर उड़ जाएगा ....
आसमां की नमी को कैद कर लिया है इन कोमल हथेलियोंमें ,
खुलते ही शायद मेरे वजूदका अंश वो भी मुझसे लेकर उड़ जाएगा ....
हथेली भीग जाती है बादल की नमींसे पल भर
बहती है बुँदे जब मुझ पर से होकर तब ये रूह उसमे नहाती है .....
मेरे घरकी छतसे शुरू हुई थी जो सरहदें आसमां की
मेरे भीगे गेसुओंसे टपकी बुन्दोंसे जो चुरायी थी बादलसे
देखो इस धरतीको भिगाती चली जाती है .......

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