28 दिसंबर 2009

आज भी तलाश है ....

मेरे कुछ सपने जो अधूरे ही रहेंगे इस साल भी ,

तभी तो मैं ताकता हूँ अभी भी हर साल नए साल की राह .....

अरमान मेरे ये वाहनों के भीड़ वाले इस शहर में

बड़ी सुबह साइकिल लेकर निकल पडूँ

वो गली गलियारे में जाकर हर दोस्तसे मिल आऊं .......

वो भी मेरे साथ ही निकल पड़ेंगे डबल सिट बैठ कर ,

यादगार रहेगा ये दिन और हम कुहराम मचाएंगे ,

जिस गुरु को बहुत सताया सालों तक ,

उसे एक अच्छा सा तोहफा देकर आ जाऊं .....

फ़िर वो ठेले पर जाकर बेर ,कच्ची आम खायेंगे ,

थोड़ी पानी पुरी और थोड़ी आलू टिक्की खायेंगे .....

ये सारी बदमाशियां करते वक्त एक भूल जानबूझके कर जायेंगे ....

उस दिन हम अपना मोबाइल घर पर ही भूल जायेंगे ...........

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