1 दिसंबर 2009

अभी भी याद है ....

वैसे तो चेहरा आपका बराबर लगता है ,

फ़िर भी कभी कभी देखनेसे डर लगता है ....

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जब देखा उन्हें तिरछी नजरसे

तब मैं मदहोश हो गया ...

पर जब ये पता चला उनकी नजर ही तिरछी है

तब तो बेहोश हो गया .....

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एक बार दिल दे दिया था अभी भी याद है ....

और फ़िर भरता रहा होटलके बिल अभी भी याद है ....

प्रियतम ! हाँ ,तुम्हारे चेहरे पर मुंहासे और खिलकी खेती अभी भी याद है ...

मेरे पैसोंसे लगाया करती थी क्लिअरेसिल अभी भी याद है ....

साइकिल टकरा कर सोरी कहनेवाली स्किल अभी भी याद है ...

और बादमें मिली हुई सेंडलकी हील अभी भी याद है ....

मानता था मैं और तुम पहिये है संसार रथके

और पड़ोसमें थे तुम्हारे काफ़ी स्पैर व्हील अभी भी याद है ......

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रचना है। भाव, विचार और शिल्प सभी प्रभावित करते हैं। सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति ।

    मैने अपने ब्लग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें ।- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

    गद्य रचनाओं के लिए भी मेरा ब्लाग है। इस पर एक लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं को तन और मन लिखा है-समय हो तो पढ़ें और अपनी राय भी दें ।-
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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