29 नवंबर 2009

२०१२- प्रलय ....फ़िल्म रिव्यू ...

२०१२ -प्रलय .....

हिन्दीमें डब की गई ये फ़िल्म परसों देखी ...एक कल्पनातीत फ़िल्म ....तकनिकी दृष्टिसे सराहनीय ...और जिस तरहसे पर्यावरणके साथ बेख़ौफ़ होकर हम खिलवाड़ कर रहे है उसका दुष्परिणामका सही चित्रण ....ज्यादातर फ़िल्में हकीकत के बीज पर बनती है ...पर पुरी दुनियाका विनाश हो रहा है ये कल्पनाका इस फ़िल्ममें चित्रण है जिसकी ज्यादातर छूट पुट घटना तो अभी भी हो ही रही है ...ऑस्ट्रेलियाके जंगल की महीनो तक न बुझने वाली आग ...भूकंपके प्रचंड झटके ...और सुनामी ...फ़िर भी हमारी आँखें नहीं खुली है ....

मुझे बात करनी है मनुष्य स्वभाव का चित्रण ...

१.... एक घने जंगलमें एक मोबाइल वान में रेडियोस्टेशन चलने वाला सर फिरा इंसान ...जिसे बचाव के ठिकानो का पता है ...नकशा और सारी जानकारी होने के बावजूद वह ज्वालामुखी के विस्फोटका आंखों देखा हाल देखते कहता है की ये नज़ारे का मैं साक्षी हूँ ....और मौत को गले लगा लेता है ....

२...फ़िल्म का हीरो जिसका तलाक हो चुका है उसका अपनी पत्नी ,बच्चे और पत्नी के नए बॉय फ्रेंड के साथ जान बचाने का जुगाड़ भी दिलचस्प ...कभी कभी आधी अधूरी जानकारी होनी भी जान पर खेल जाते वक्त कितनी उपयुक्त साबित हो सकती है इस बात को उस बॉय फ्रेंडके प्लेन चलानेके ज्ञानसे जोड़ सकते है ...

३...सभी विकसित राष्ट्रप्रमुख का सुरक्षित जगह रवाना होना ...और आम आदमी का हतप्रभ होकर अपने को इस प्रलय में विलीन होते देखना ..हमें विचलित कर देता है क्योंकि हम भी उसी आम आदमीके हुजूममें शामिल है .सिर्फ़ पैसे वालों को ही जान बचाने का हक़ मिलता है ...आदमी का स्वार्थी होना ...और वक्त के अनुसार रंग बदलना बखूबी दिखाया है ....

४... पर हर हाल में जान बची तो लाखों पाये इस उक्तिको सार्थक करता हीरो आख़िर तक जो संघर्ष करता है उसी कारण हमारी सभ्यता बच सकती है .....

अगर हम आज से इस बात को समजें तो आने वाली पीढ़ी को कुछ और साँसे दे सकेंगे ....

देखिये एक बार जरूर ...

3 टिप्‍पणियां:

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