दरख्तोंके शामियानेमें कोयलकी कूक शहनाई बन गूंज उठी ,
अम्बियाकी खट्टी सी खुशबू साँसोंको तर करती चली गई ,
बहारों का खुशनुमा मौसम दस्तक देने लगा मेरे दर पर ,
क्यों तेरे इंतज़ारमें बिछी मेरी आँखे तेरी तस्वीर पर ठहरकर नम हो गई ?
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दरारोंको भर रही थी गीली मिटटीसे कल ,
हर दरारमें तेरी यादें छुपकर बैठी थी ....
मिटटीसे उसे भर न सकी मैं ,
टूटे शीशेसी तुम्हारी यादोंको सजाकर बिखरनेका इंतज़ार कर गई ......
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तकरीर तुम्हारी सुन ली प्यार का इज़हार लिए ,
सुन सको तो सुन लो जो मेरी खामोशी बयां कर गई .....
हर दरारमें तेरी यादें छुपकर बैठी थी ....
जवाब देंहटाएंमिटटीसे उसे भर न सकी मैं ,
टूटे शीशेसी तुम्हारी यादोंको सजाकर बिखरनेका इंतज़ार कर गई ......
waah kya baat kahi lajawab