25 अक्तूबर 2009

एक शामियाना ....

दरख्तोंके शामियानेमें कोयलकी कूक शहनाई बन गूंज उठी ,

अम्बियाकी खट्टी सी खुशबू साँसोंको तर करती चली गई ,

बहारों का खुशनुमा मौसम दस्तक देने लगा मेरे दर पर ,

क्यों तेरे इंतज़ारमें बिछी मेरी आँखे तेरी तस्वीर पर ठहरकर नम हो गई ?

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दरारोंको भर रही थी गीली मिटटीसे कल ,

हर दरारमें तेरी यादें छुपकर बैठी थी ....

मिटटीसे उसे भर न सकी मैं ,

टूटे शीशेसी तुम्हारी यादोंको सजाकर बिखरनेका इंतज़ार कर गई ......

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तकरीर तुम्हारी सुन ली प्यार का इज़हार लिए ,

सुन सको तो सुन लो जो मेरी खामोशी बयां कर गई .....

1 टिप्पणी:

  1. हर दरारमें तेरी यादें छुपकर बैठी थी ....

    मिटटीसे उसे भर न सकी मैं ,

    टूटे शीशेसी तुम्हारी यादोंको सजाकर बिखरनेका इंतज़ार कर गई ......
    waah kya baat kahi lajawab

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