11 सितंबर 2009

याद आई किसीकी यूँही ...

देखती रही मैं वक्त को अपनी हथेलीसे फिसलते हुए ,

अभी तो साथ थे ,पास पास थे , हाथसे लेकर मूंगफली खा रहे थे ,

लम्हा लम्हा करके वक्त सरकता सा गया ,

लम्हा घंटे में और घंटा दिनमें तब्दील होता गया ,

दिन हफ्ते में और हफ्ता महीने सालमें बदल जाएगा ,

देखो जिंदगीकी किताबमें कुछ लिखा हुआ कुछ कोरा सा

बस हर पल एक सफा जुड़ता चला गया ....

कल का वो हँसी लम्हा गुजरे वक्त के साथ इतिहास बनता गया ,

जिसने सिर्फ़ यादें छोड़ी है हमारे दिल में इन कोरे सफे पर लिखने के लिए ,

जिसे पहचान न पाए जब साथ साथ थे

वक्त उसे प्यार का चोला पहनाकर चलता गया ....

ये कोई महान व्यक्ति का इतिहास नहीं है

बस हर आम अदने इंसानकी जिंदगीमें

बस बरबस मैं यूँही आज झांक कर चली गई ....

4 टिप्‍पणियां:

  1. ये कोई महान व्यक्ति का इतिहास नहीं है

    बस हर आम अदने इंसानकी जिंदगीमें

    बस बरबस मैं यूँही आज झांक कर चली गई ....
    gehrebhav,magar roj ka sach,har insaan ka,sunder.

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. sahi kaha.........har aam aadmi ka aaj yahi haal hai.

    read my new blog--http://ekprayas-vandana.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...