आज सुबह का हँसी समां था ,
ऐसे ही बैठे थे उगते सूरज का नजारा था ,
हाथमें खुली डायरी थी, कोरे पन्ने थे ,
दांतों तले कलम दबाये शब्द को पढ़ रही थी .....
खुले आसमानके रंगों की भाषामें लिखे थे ,
हसीं वो तस्वीरें कुछ फरमा रही थी
और मुझे तुम्हारे साथ गुजरे वो हँसी पलोंकी
बड़ी शिद्दतसे याद आ रही थी ....................
अनजानेमें ये नटखट आंखोंसे कुछ अश्क बेकाबूसे बह गए ,
उस कोरे पन्ने पर तुम्हारी तस्वीर बना गए ,
मेरी सहर तुम हो, मेरी शाम तुम हो ,
मेरी जिंदगीकी इब्तदा से इन्तेहाँ तक का सफर तुम हो .......
अत्यन्त सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंwaah........kya khoob likha hai......shandar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंtum se hi mera jahan,behad komal bhav se rachi sunder nazm,badhai
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