मनमें एक कसक सी उठती थी जो उस चौराहेसे होकर कभी गुजरते थे ,
कभी आशियाना था मेरा जो ,उस जगह एक खंडहर सा खड़ा था .......
एक पलके लिए अन्दर जाने को दिल किया और चले भी गए ,
हर कौना उस घर का मेरी यादों को समेटे अभी मेरे इंतज़ारमें था .....
उस अलमारी को खोलकर देखा वहां थोडी सी गर्द को साफ़ किया ,
वो तुम्हारी कान की बुँदे जो लाया था कभी अभी वहीं पड़ी थी .......
wonderful....its realy touch my heart...
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