जानकी चट्टी से होते हुए फ़िर एक बार लौट कर बारकोट आना पड़ता है. रात ठहर कर फ़िर सुबहमें हमारी यात्रा प्रारंभ हो जाती है .यमुनोत्री की चढाई थकानवाली रही .रात भर सभी बेखबर सो गए . एक और हसीं सुबह शुरू हो गई नए सफर के साथ .गंगोत्री तक जाने का रास्ता शुरू से ही बड़ा ही सुहाना है .उसके पेड़, रस्ते और पहाड़ की एक नई ही तासीर देखी.सूरज की मस्त किरणे हमारे शरीर को यहाँ जला नहीं सकती क्योंकि सर्द हवाएं उसे नर्म बनती रहती है . नीरव शान्ति का साम्राज्य है . मन के भीतर और खिड़की के बाहर .रस्ते में एक छोटा मन्दिर पड़ा . थोडी देर उतरकर पैदल चले . थोड़े और दूर जाने पर गुप्त गंगा का मन्दिर आता है ।छोटी सी चढाई है . बाद में एक छोटे से द्वार में होकर गुफा के अन्दर शिवलिंग है .पुरी जगह घुटनों तक पानी से भरी हुई है . ये पानी कहाँ से आता है और कहाँ जाता है यह रहस्य ही है . अन्दर टोर्च लेकर जाना पड़ता है . अँधेरा ही है . बाहर आकर सूखे पत्तों की बिछी कालीन पर चलते हुए और निर्मल बहते झरने का पानी पीते हुए हम फ़िर आगे चल पड़ते है .थोड़ा और आगे ....थोड़ा और आगे ... आगे चलने पर पहली बार गंगा का दर्शन हुआ .श्वेत प्रवाह ....जमुना का प्रवाह तो पुरा नीला था . और ये सफ़ेद ......बोलो गंगा मैया की जे !!!!!!!!
अब एक मैदान नुमा जगह आती है और ये है उत्तरकाशी ।थोड़े साल पहले यहाँ पर भूस्खलन के कारण एक पुरा चार मंजिला होटल खँडहर मैं तब्दील हो गया था .आगे एक पॉवर हाऊस आता है .
एक बार फ़िर प्रकृति करवट लेती है । हरी भरी वादी बड़ी बड़ी चट्टानों में बदल जाती है .तीव्र मोड़ ॥पथरीला रास्ता . दो विदेशियों को मोटर साइकिल पर जाते हुए देखा . उत्तरकाशीसे ३९ किलोमीटर की दुरी पर गंगनानी नामक जगह आती है .यहाँ पर गर्म पानी के कुंड है . अच्छी तरह पक्की बंधी हुई जगह है . महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था है . चाय नाश्ता भी कर सकते है . यहाँ नहा धोकर गंगोत्री जाना बेहतर है . और आगे का रास्ता फ़िर पथरीला है . एक शिला १०' x १०' के साइज़ की ऊपर लटक रही थी जाने का रास्ता ठीक निचे है . बाप रे ....एक बार तो सोच ही लेते है ..कहीं गिरी तो ?
हमारी गंगा तो पूरे मस्ती के माहौल से गुजर रही है। कहीं पर २५फ़ीत् तक चौडी तो कहीं पर चार फीट में सिमट कर १० फीट ऊँचे से छलांग लगाती है . बस देखते ही जाओ ...कहीं तीन चार अलग धारा में बंट जाती है और कहीं एक हो जाती है . अब शुरू होता है सात पहाड़ का सफर . रास्ता एक के बाद एक सात पहाड़ से गुजर कर आगे बढ़ता है . और उसके बाद शुरू होती है देवदार के ऊँचे पेडोंकी कतारें ...पहाडी हुश्न का एक और मकाम .कहीं कंही बर्फ बिखरी पड़ी है ॥ गंगा तो दिल खोल के गाती रहती है .
हमारे ड्राईवर ने कहा इस जगह का नाम हर्षिल है । ये जगह गंगनानी से ३२ किलोमीटर की दूरी पर है . यहाँ पर राज कपूर की प्रसिध्ध फ़िल्म 'राम तेरी गंगा मैली ' की हिमालय के दृश्य वाला पुरा हिस्सा फिल्माया गया है .अब अगर सो रहे हो तो जाग भी जाओ . एक पुरानी फ़िल्म का सुंदर मुकेश वाला केसेट निकालो और बजाओ .प्रकृति की ये सुन्दरता के दर्शन बड़ी किस्मत के बाद मिलेंगे . भैरों घाटी ये इस सुंदर जगह का नाम .नीली जहान्वी और सफ़ेद गंगा का संगम है . मेरे इस लेख का शीर्षक यहाँ पर सार्थक होता है . यह पुरी वादी सौंदर्य की एक परिभाषा है ......
और अब हम पहुँच चुके है गंगोत्री .......
यमुनोत्री की कठिन चढाई यहाँ नहीं है । सीधे ही मन्दिर के द्वार के पास वाहन ठहरता है .अगर थोड़े जल्दी पहुंचे तो रात तक उत्तरकाशी लौट सकते है .गंगा का जो सौंदर्य आप यहाँ देखते है वह कहीं पर भी नहीं है .यहाँ पर गेस्ट हॉउस के अलावा इशावास्यम नामक जगह है जहाँ पर आप निशुल्क ठहर सकते है और भोजन भी निशुल्क ही मिलता है जाते हुए आप कुछ भी रकम स्वेच्छा से दान में दे सकते है . हम प्रायः गेस्ट हॉउस में ही रुके . फ्रेश होने के बाद गंगोत्री मन्दिर दर्शन करने गए . हमारा होटल गंगा प्रवाह और मन्दिर के दुसरे किनारे पर था . एक सुंदर पुल पार करके हम गए . बहुत ही खूबसूरत मन्दिर है . प्रसाद वगैरह लेकर भोजन के लिए इशावास्यम में गए . ये स्थान सुमुद्रतल से १०००० फीट से भी ऊपर है . पुरी बर्फ से लिपटी हुई ....आंखो से देखो और रूह से महसूस करो ....
अगर आप गौमुख तक जाना चाहते है तो रात्रि मुकाम के बाद दूसरी सुबह ५ बजे ही घोडे वाला तय करके निकल जाए तो शाम तक लौट सकते है । गौमुख यहाँ से १८ किलोमीटर दूर है . हमारे साथी कोई तैयार नहीं थे . दो दिन रुकना किसीको गवारा न था . अतः हमें तो इधर से ही दुखी मन से लौटना पड़ा था . लेकिन हम दोबारा यहाँ पर जरूर आयेंगे और पुरी यात्रा करेंगे .यहाँ पर दही एक छोटी कटोरी २० रुपये और गर्म पानी १५ रुपये ....
प्रकृति प्रेमी और ट्रेकिंग के शौकीन लोग के लिए एक टिप है ।गंगोत्री से ९ किलोमीटर चिरबासा (११८०० फीट ) , वहां से ५ k.m. (भोजवासा), और ४ k.m. गौमुख जरूर जाएं .यहाँ से आगे लगभग १४ k.m. लगभग उतने ही दूर है तपोवन नामक जगह (१४८०० फीट ) है जिसकी सुन्दरता को आप अल्फाजोंमें बयां नहीं कर सकते .
सुबह गंगोत्री मन्दिर में दर्शन करने के बाद हम उसके किनारे पर गए । गंगा जल का आचमन किया . बड़े बड़े पत्थरोंसे बहती इस नदी का शीतल तम जल और अपार फैला हुआ विराट सुन्दरता का साम्राज्य ....!!!!जल को सर ऊपर चढाते वक्त में रो पड़ी . भगवान् को कहा THANK YOU GOD !!! मुझे आपने इतनी खुश नसीबी दे दी की मैं गंगा को उसके उदगमस्थान से देख पायी हूँ !!!! आप को मैंने यहाँ पर देख लिया है इस अप्रतिम शोभा के रूप में !!
वापसी में हम लौटे हर्षिल रुके लगभग डेढ़ घंटे । सेब के बागीचे है . और सुंदर झरनों के समान गंगा . रात में उत्तरकाशी लौटे . रुकने के लिए सुचारू इंतजाम है . जरूरत की सभी चीजें यहाँ पर उपलब्ध है . सुंदर बाजार है ....दूसरे दिन हम यहाँ के प्राचीन मन्दिर में दर्शन करने के बाद हमारे साथियों को अलविदा कहते हुए ऋषिकेश लौट चले ....
उत्तरांचल की यात्रा यहीं पर समाप्त .... लेकिन हमारा भ्रमण अभी ख़त्म नहीं हुआ है . और भी साथ घूमेंगे हम सब ...
photographs?
जवाब देंहटाएंआपने अपने भ्रमण का ये पल बयाँ करके 2 साल पहले के उस पल की दिला दिया जो आज भी हमारी यादो में बना हुआ है जीवन की इस भागदौड भरी जिंदगी जहाँ कुछ पलों के लिए जिंदगी ने राहत की सांस ली थी । नही भूलूंगा वो पल जब तक है जान
जवाब देंहटाएं