हर कविको अपनी हर रचनासे प्यार होता है पर कुछ रचना उसे बहुत ही खास लगती है अपने आपसे बेहद करीब ...ये रचना मूलत: गुजराती है पर उसे अनुवादित किया है ....
आज ऐसी ही एक रचना प्रस्तुत है :
एक सुनहरी सुबह मैं जागी ...
कुछ एह्सासोको अपनी डायरीमें लिखना चाहा
अरे !! पर ये क्या ???
अपनी कितनीही अनमोल अनुभूतियों को शब्ददेह देकर
तह करके रखी थी मैंने इस डायरीमें ...
पर ...
देखा तो कहीं कहीं पूरा के पूरा पृष्ठ ही कोरा पाया मैंने ...
देखा तो ....
शब्द झूमते मचलते हुए
इस दुनिया की सैर को निकल पड़े थे .....
किसीको देखा मैंने पेड़ की टहनी पर ,
कोई बैठा था हरे पत्तेकी गोदमे औस की बूंद बनकर ....
कोई सूखे पत्ते पर बैठकर हवा के झोकेके साथ बह चला ,
तो कोई खिले फूल पर बैठ खुशबू ले रहा था ....
कोई तितली के साथ डाली डाली घूम रहा था ,
कोई भौरेंके साथ गा रहा था .....
कोई खूबसूरत चेहरे पर तिल बनकर सजा था ,
कोई माशूकाकी बाली पर बैठ झूल रहा था .....
कोई कैद हो चूका था उसकी आंखोके मदमाते काजलकी लकीरों में ,
तो कोई होठों पर मुस्कान बनकर सज गया था .....
कोई दिलके दरिया में डूब गया था ,
तो कोई साहिल पर महबूबा के आने के इंतज़ारमें था .....
बेहद खुश थे सब अपने नए मंज़र पर ,
उन्हें वैसे ही वहां पर रहने दिया मैंने ....
अब कोरे पन्नो पर स्मृतियोंकी तस्वीरें लगा दी है ,
कोरे पन्नों पर अनकहे जज्बातोंकी खुशबू महका दी है .....
apne ahsason ko bahut khoobsoorti se pesh kiya hai aapne
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
कोई खूबसूरत चेहरे पर तिल बनकर सजा था ,
जवाब देंहटाएंकोई माशूकाकी बाली पर बैठ झूल रहा था .....
कोई कैद हो चूका था उसकी आंखोके मदमाते काजलकी लकीरों में ,
तो कोई होठों पर मुस्कान बनकर सज गया था .....
कोई दिलके दरिया में डूब गया था ,
तो कोई साहिल पर महबूबा के आने के इंतज़ारमें था .....
bahut sundar rachna aapki....
कोई खूबसूरत चेहरे पर तिल बनकर सजा था ,
जवाब देंहटाएंकोई माशूकाकी बाली पर बैठ झूल रहा था .....
कोई कैद हो चूका था उसकी आंखोके मदमाते काजलकी लकीरों में ,
तो कोई होठों पर मुस्कान बनकर सज गया था .....
कोई दिलके दरिया में डूब गया था ,
तो कोई साहिल पर महबूबा के आने के इंतज़ारमें था .....
bahut sundar rachna...