काजलकी काली लकीरने तुम्हारी आँखें सजा दी थी ,
जब सामना हुआ तुम्हारा हमारा आज तो क्या हुआ !!!
दरिया छलक रहा था मोती बनकर पलक से तुम्हारी
काजल बाँध तोड़कर बह आया बाहर पलकों से ,
वो काली सी ,धुंधलीसी ,संदली सी लकीर एक
सज गई तुम्हारे चेहरे पर ऐसे दाग जैसे चाँद पर !!!!!!
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पंछीके पंख पर बैठकर मुझे थोड़ा उड़ने दो ,
झरनोंकी तेज धारों पर मुझे छलककर बहने दो .........
छुपी है अम्बिया पर जो कोयल उसकी कुक सा चहकने दो ,
मयूरके पंखो के रंगमें घुलकर थोड़ा सा नाच लेने दो .......
एक छोटेसे बच्चेकी आंखोंमें सपना बनकर सो जाने दो ,
सदा ये आ रही है किसीकी इंतज़ारमें मेरे ,चलो मुझे वहां पर जाने दो ......
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आपकी यह कविता गहरी भावनाओं की अनुभूति कराती है
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