जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
12 दिसंबर 2008
ये कहाँ जा रहें हैं हम ??????
आज के ज़माने में हम जिस रफ्तारसे जिंदगी में भाग रहे है उसमें बस एक ही चीज का अभाव हमें खाए जा रहा है और वह है फुरसत ...!!!!ढूंढो सुबह से शाम तक में बस चंद फुरसत के लम्हे और वह भी सिर्फ़ आप और आप के लिए ही हो ......
कुछ सोचो :१. आप याद कीजिये आख़िर में कब आपने सूर्योदय की सारी क्षणोंको बस उसी पर ध्यान लगा कर देखा था ?
२.चलो एक चिडिया को अपनी चोंचमें कुछ दाने चुनकर लाती है और अपने बच्चों को खिला रही है ऐसा कब अन्तिम बार नजारा किया था ?
३.एक छोटा सा बन्दर का बच्चा जो पूरे विश्वाससे माँ को लिपटा हुआ हो और उसकी माँ एक लम्बी पुरी छलांग लगा रही हो ?
४. एक गाय जो पेड़ की छाया में बैठकर आँखे मूंदकर मुंह में कुछ चबा रही और पूंछ से मक्खी भी उड़ा रही हो ....
५. एक छोटा सा अनजान बच्चा जो आपकी और एक मासूम सी मुस्कराहट बिखेर रहा हो .....
६. एक गिलहरी जो एकदम तेज यहाँ से वहां भागदौड़ कर रही हो ...
अरे जनाब क्या सोच में पड़ गए हो ? सोच रहे हो इसमे नया क्या है ? और फ़िर धीरे से बोल पड़ोगे की ऐसी फालतू और बेतुकी बातों के लिए हमारे पास फुरसत कहाँ है ???
तो ऊपर वाले छ सवालों को कुछ ऐसे देख लेते है ::::१. हम किसी काम पर सिर्फ़ उसी पर अर्जुन दृष्टि टिकाकर वो काम नहीं करते कभी .हमारा मन एक ही वक्त पर एक साथ कई बातें सोचता है . मसलन आज ऑफिस की मीटिंग से लेकर शाम को वर्माजी के बच्चे की बर्थडे पर लाने वाली गिफ्ट तक सभी चीज एक साथ .बस इस सोच की घड़ी की काँटों से अपनी जिंदगी को बाँध कर चलते है . और सामने वाला खुशियों से भरा एक लम्हा जैसे की उगते सूर्य की पहली किरण भी हमें नजर नहीं आती और चाय के घूंट तो यंत्रवत ही गले के निचे अख़बार पढ़ते उतर जाते है ...घड़ी से बंधा स्ट्रेस हमारे दिमाग और बाद में दिल का दौरा बनने लगता है ...
२.जितनी जरूरत हो उससे बहुत अधिक पा लेने की ख्वाहिश ,दुनिया की दौड़ में सबसे आगे निकल जाने की ख्वाहिश हमें यूँही दौड़ते रहने पर मजबूर करती है .चिडिया अपने बच्चों के मुंह में तब तक ही दाने देती है जब तक वह बच्चे उड़ना नहीं सीखते .हम अपनी आनेवाली पीढी को अपने पैरों पर खड़े रहना कब सिखायेंगे ?मौका ही नहीं देते हम .सबकुछ पिता और माता रेडिमेड जुटा कर देते रहते है ..अपनी ख्वाहिशों का बोज बच्चे की पीठ पर लादने का काम करते है बस ठीक वैसे ही जैसे फ़िल्म "तारे जमीं पर " में हम देख चुके है .
३.हम इंसान दूसरों की नियत को शक की निगाहों से देखने की आदत पाल चुके है .किसी भी बात को एक बार जरूर शक के चश्मेसे जरूर देख लेते है .अपने आप को एक साथ इतनी सारी जगह पर उलझा कर रख देते है की हर चीज को बादमें ठीक से संभाल ही नहीं पाते और यह चक्कर धीरे धीरे हमारे आत्मविश्वास की जड़ों को हिलाने लगता है .नौकरी और घर के बिच में उलझी हुई आज की शहरी माँ को अपने बच्चे के साथ स्तापू ,या छुप्पा छुप्पी खेलने की फुरसत होती ही नहीं तो बच्चे अपने आप को अकेला और कमजोर महसूस करने लगते है .४.गाय जैसे जानवर भी शान्ति से खाते है और बादमें चबाते है .खा लेने के बाद थोड़े समय विश्रांति भी लेते है .चलो याद करो हम कैसे खाते है ?एक दम जल्दी जल्दी ...क्या और क्यों खाते है ?यार बस पेट ही तो भरने की बात है और रेडीमेड से बेहतर क्या ?समय की बचत होती है {और बाद में ये बचा हुआ समय ही फ़िर लंबे समय तक खाट पकड़ने पर मजबूर कर सकता है ...}५. आयना देखिये ..आपकी आँखों में , चेहरे पर, होठों पर एक हरी भरी मुस्कान दिन में कितनी बार आती है ? एक ऐसे दिन को याद कीजिये जिस दिन आपका दिल किसी खुशी से छलक रहा हो तब आपके होठों पर -बातों में -आँखों में हँसी छलकी होती है और ऐसे खूबसूरत चेहरे को देख कर ही कोई मासूम सा बच्चा आपकी ये शख्सियत की सराहना अपनी मुस्कान से करता है ....६.गिलहरी की दौड़ भाग तो ठीक आपकी तरह होती है लेकिन अपनी जरूरत को पुरा करने पर वह भी रुकती है और आप ??
याद रखिये दुनिया की श्रेष्ठतम अस्पताल आपका इलाज सिर्फ़ शारीरिक तौर पर ही कर सकती है मानसिक रूपसे नहीं . इन बीमारियों से बचना हो तो मानसिक रूप से संतुष्ट रहना सिख जाईये .आप सोच रहे होंगे की ये सब दीवानगी की बातें है वास्तव में ये सम्भव नही है .तो एक सच और भी है ..हमारी हर समस्या की जड़-तह प्यार की प्यास पर ही आकर अटकती है .नवजात शिशु से लेकर उम्र की संध्या की दहलीज पर खड़े बुजुर्ग तक सभी को एक प्यार भरे बोल और एक प्यार भरे स्पर्श की आशा है और हमारे पास दुनिया की सारी चीजें है पर सिर्फ़ इसी के लिए फुरसत नही ....प्रकृति के पास क्षण भर के लिए रुकिए ...देखिये सभी जीव प्राकृतिक रूप से जीते है और हमने प्राकृतिक रूप से जीना तो छोड़ ही दिया है पर प्रकृति को भी अपने स्वार्थ के लिए तोड़ मरोड़ कर रख दिया है .मन की शान्ति हमारे मन के अन्दर ही है बाहर नहीं होती .उसे अपने भीतर ही ढूंढ कर देखिये न !!तन और मन दोनों लंबे अरसे पर आप स्वस्थ पाएंगे ...
बस कुछ पल फुरसत के निकालिए और बस थोड़े से लम्हों को कुछ ऐसे भी जीकर देखा जाए :१.उगते या डूबते सूर्य को पूरे मन से देखिये ..गगन के बदलते रंग और प्राकृतिक छटा ...!! या फ़िर चांदनी रात में चाँद और सितारों की महफ़िल में थोडी देर के लिए विंडो शोपिंग का आनंद उठाएं ...!!
२.एक जगह बैठकर अपनी पसंद के संगीत के सुरों में डूब जाओ ....खास कर रात को सोने से पहले ..शायद दिनभर की थकान दूर करने का एक अक्सीर इलाज यही हो ...!!!
३.अपने बच्चे के साथ बच्चे बनकर खेलने बैठ जाईये .....
४.अपने बुजुर्ग माँ बाप के पास दिन के चाँद मिनट के लिए बैठकर देखिये उनके चेहरे पर खुशी की चमक ...एक अपनेपन का अहसास !!!!
५.दिनरात आपकी गृहस्थी को संभालनेवाली आपकी पत्नी की तारीफ के कुछ अल्फाज बोल कर देखिये और उसके मुख पर छाने वाली गुलाबी रंगतमैं आपको मिलेगा आपकी अपनी खुशी का एक पता .....
६.एक छोटा सा तोहफा आपके अपनों के लिए कभी कभी .....
उन खुशियोंकी कोई कीमत नहीं होती पर ये खुशियाँ आपके खुशहाल जीवन की वजह जरूर बन सकती है .....
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विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...
सुंदर विचार. जारी रहें. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं---
Behad achha laga padhna...yahi chhoti, chhoti batonko ham nazar andaaz kar pataa nahi kaunsi "badee" baatki khojme rehte hain>>!
जवाब देंहटाएंSwagat hai aur mere blogpe aaneka ek snehpoorn nimantranbhi...
bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंहिंदी लिखाडियों की दुनिया में आपका स्वागत।खूब लिखे। बढ़ियां लिखे। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंकृपया सैटिंग में जाकर बर्ड वैरिफकिशन हटा दें। टिप्पणी करते ये परेशानी पैदा करता है।
ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं… इसी तरह खूब अच्छा लिखें… एक अर्ज है कि कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें ताकि टिप्पणी करने में बाधा न आये… धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंसुंदर विचार
जवाब देंहटाएंआप का कहना दुरुस्त है
जवाब देंहटाएंवक़्त की भागा भागी मैं, इंसान कितना कुछ खोता है
उसे ख़ुद ही पता नही चलता
अच्छा लेखन
आपके विचार स्वागत योग्य हैं. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंपहले तो सोचा कि कुछ लिखूं....मगर आपने तो बात ही इतनी गहरी लिख डाली कि कुछ भी लिखना व्यर्थ ही लगा....फिर सोचा क्या करूँ...आपको बधाई जो देनी थी....इतनी अहम्...और गहरी रचना के लिए....!!और अपने मन की बात में ये भी.............
जवाब देंहटाएंइस थोडी-सी बिना पढ़ी-लिखी जगह पर......!!
एक ऊँचे से ताड़ के पेड़ पर........घने पत्तों वाली लम्बी डालियों के बीच.......थोडी-सी जगह पर.......खेल रही हैं कुछ गिलहरियाँ......फुदकती....उछलती..... मचलती.... दौड़ती....भागती......जरा-सी ही जगह पर........बिना लड़े और झगडे....मिल-जुल कर खेल रही हैं ये बिना पढ़ी-लिखी ये गिलहरियाँ.......!!
......................कई पेड़ हैं एक साथ खड़े हुए.....थोडी-सी ही जगह पर.......एक दूसरे के साथ हँसते और गपियाते हुए......तरह-तरह के पत्तों वाले.....तरह-तरह के फूलों वाले.....सदियों से ये एक ही साथ रहते हुए.....जीवित और स्पंदित....बिना पढ़े-लिखे पेड़......!!
..................इसी थोडी-सी ही जगह में.......कई तरह के पंछी.....कई तरह के जीव-जंतु....बरसों से साथ-साथ ही रहते हैं.......हिल-मिल कर....खेलते-खाते....हँसते- बतियाते......अपनी उम्र पूरी करके मर जाते.........मगर किसी ने भी आज तक यह नहीं कहा..........हमारी है....या हमारे बाप-दादा की है......या हमारे बाद यहाँ रहेंगे हमारे बच्चे........बिना पढ़े-लिखे ही.........!!
......................कितने ही मौसम बदलते हैं.......बदले हैं.......मौसमों के साथ फल-फूल भी....जीव-जंतु भी.....मगर माहौल तनिक भी नहीं बदलता.......वैसा ही बना रहता है....तरो-ताज़ा......सदाबहार.......हरा-भरा.....खुशनुमा.......!!......टी.वी.पर एक मिनट में दर्जनों चैनल बदलते हम.........यहाँ एक ही दृश्य को देखते मिनट-घंटे-दिन तो क्या.....इक पूरी जिन्दगी ही निकाल दें........एक ही दृश्य को निरखते हुए......!!
.............................बिना पढ़े-लिखे पहाड़.....बिना पढ़े-लिखे जीव-जंतु.....बिना पढ़े-लिखे पेड़.......और बिना पढ़ा-लिखा आसमा.....रह रहे हैं इसी बिना पढ़ी-लिखी पृथ्वी पर......आपनी-अपनी जगह पर.....बिना एक दूसरे का अतिक्रमण किए हुए.....बिना एक-दूसरे से झगडे हुए........किसी के बाप-दादा की नहीं हुई ये ज़मीन..........किसी ने भी इसे कभी अपना भी नहीं कहा........मगर जमीन का बिना इक छोटा-सा टुकडा खरीदे हुए भी........पृथ्वी को जिया है इन्होने अपनी आत्मा की तरह.......धरती के हर इक स्पंदन को......इन्होने जिया है अपनी हर-इक आती-जाती साँस की तरह........!!
.................गिलहरियों का खेल अभी तक चल ही रहा है.........इस पेड़ से उस पेड़....इस डाली से उस डाली.........पंछी आ-जा रहे हैं उड़-उड़ कर वापस अपनी ही छोटी-सी जगह पर.......और आश्चर्य तो यह है कि तरह-तरह के ये पेड़-पौधे.....पक्षी....जंतु.....पहाड़....नदी....आसमा....धरती......सब समझते हैं एक-दूसरे की भाषा.....बिना पढ़े-लिखे ही.....!!
.................यहीं पास ही खड़ी हुई हैं......कुछ निर्जीव बिल्डिंगे.......और बनने को तैयार हैं कुछ और नई भी......कई प्लाट तो काट लिए गए हैं.....और कुछ काटे जाने वाले भी हैं.......इसी थोडी-सी जगह पर हैं......ऊपर बताये गए पेड़....पहाड़.....जंतु....पंछी.....नदी....और ख़ुद यह जमीन भी......!!..........!!........!!
..............बस कुछ ही समय में ख़त्म हो जाने को हैं....ये बिना पढ़े-लिखे लुभावने दृश्य........!!.......!!
िजंदगी की सच्चाई को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokvichar.blogspot.com
प्रितिजी
जवाब देंहटाएंआपका अभिवादन। विशेष
उन खुशियोंकी कोई कीमत नहीं होती पर ये खुशियाँ आपके खुशहाल जीवन की वजह जरूर बन सकती है ....."फुरसत" शब्द को मनुष्य के जिवन पर क्या प्रभाव डालती है इस बात पर आपने अच्छी व्यख्या कि है आपने सरल भाषा मे लिखा जो उत्तम लगा।
कृपया ब्लोग से वर्डवेरिफिकेशन हटा ले तो टिपणी करने मे आसानी होगी। समय निकालकर मेरे हिन्दि ब्लोग "हे प्रभु यह तेरापन्थ" पर पधारे।
ctup.bhikshu@gmail.com
http://ombhiksu-ctup.blogspot.com/
HEY PRABHU YEH TERA PATH
कलम से जोड्कर भाव अपने
जवाब देंहटाएंये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंखूब लिखें,अच्छा लिखें
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंउम्मीद है निरंतरता बनी रहेगी
अगर वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो प्रतिक्रिया देने में आसानी रहेगी
aap sabka main tahe dilse shukriya karti hun bas yunhi mujhe protsahan evam sahyog milega ye asha hai...
जवाब देंहटाएंaapki wo 6 batain......bilkul sahi hain..
जवाब देंहटाएंhum karte kiske liye hain jo karte hain kamate hain wo sab apno ke liye hi to in sab mei ghir kar agar ghar ko apne parivaar ko samay aur unko khush na kiya to fir kya jeevan choti choti baton se hi rishte majbut hote hain....
Congrat. Good essay. Keep it up.
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉग जगत में प्रवेश करने पर आप बधाई के पात्र हैं / आशा है की आप किसी न किसी रूप में मातृभाषा हिन्दी की श्री-वृद्धि में अपना योगदान करते रहेंगे!!!
जवाब देंहटाएंइच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए!!!!
स्वागतम्!
लिखिए, खूब लिखिए!!!!!
प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें
सच कहा है
जवाब देंहटाएंबहुत ... बहुत .. बहुत अच्छा लिखा है
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है
कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.ucohindi.co.nr
वाकई अति व्यस्तता का लबादा ओढे हम कहाँ जा रहे हैं! स्वागत.
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