दरख्तों पर सूखे पत्तेकी तरह जिंदगी ठहरी थी कुछ देर ,
हमने उस पत्ते पर रंगोसे एक तस्वीर उभार दी है ....तस्वीरकी हरियालीने लुभाया दरख्त को इस कदर कि
हर शाख पर उसने पत्ते उगा लिए ,जिसे मैंने रंगोसे भर दिया ...........
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झरोखों पर अखियोंके एक आस बिछी है ...
हमारी हर निगाहोमें तुम्हारी तलाश बिछी है ...
हर राह पर आशा तुम्हारे कदमकी एक आहटकी बिछी है ....
जिंदगीके इस अधखुले गुलिस्तांमे तुम्हारे इंतज़ारमें बहार बिछी है .......
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bahut achha likhte he aap .....
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