6 दिसंबर 2009

एक तड़प ....एक कसक ...

दुझते रिसते झख्मोंका वह बाकी निशां

दिल की तहोंमें दफ़न करके बैठ जाएँ ,

आज तेरी यादोंके आगोशमें लिपटकर

बस नूरके इक बूंद को हलकसे निगल जाएँ .....

वफ़ाकी जो रस्म थी बदस्तूर हम निभाए है ,

बस मिलनके मक़ाम पर हम सफर आधा छोड़ आए ...

प्याससे सूखे लबोंमें शबनमकी हिफाजत होती है ,

प्यार छलक कर बह जाए ये हमें गवारा न हुआ ,

काफी था बस दिलमें एक टीस बन जिन्दा रहना ,

किसीकी कब्र पर बैठ सपनोका आशियाना बनाना ...

खुशियों पर अपनी किसीके अरमान दफन करके

हमारा प्यार का आखरी मक़ाम यूँ दागदार न हुआ .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. काफी था बस दिलमें एक टीस बन जिन्दा रहना ,

    किसीकी कब्र पर बैठ सपनोका आशियाना बनाना ...

    खुशियों पर अपनी किसीके अरमान दफन करके

    हमारा प्यार का आखरी मक़ाम यूँ दागदार न हुआ .....

    bahut hi gehre jazbaat,sunder rachana.

    जवाब देंहटाएं
  2. काफी था बस दिलमें एक टीस बन जिन्दा रहना ,
    in panktiyon ne hi sab kah diya.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...