28 नवंबर 2009

हम तुम ....

करवट ले रहा ये वक्त

जिंदगीके बिछौने पर

कुछ सिलवटे छोड़ता गया

फ़िर भी कुछ पुराने रिश्तोको

यादोंके वीरानेसे जोड़ता गया ....

कुछ कुछ नया भी जुड़ गया है

कुछ जानकर कुछ अनजानेमें

मेरी मर्ज़ीको जाने बगैर ही

ये वक्त बेख़ौफ़ होकर

मुझे हर लम्हे लम्हे गुजरते वक्तसे जोड़ता गया ...

मूड मूड कर देखनेकी चाहत है

वो गुजरे मकामका खाली मंज़र ,

खड़ा है मगरूबीसे एक सूखे पेड़के ठूंठसा ....

मुझे एक कसक बन याद आता रहा

वो बहारोंके मौसमका खिलना ,

उस दरख़्त पर बिखरा

खाली आशियाना पंछी का ......

वो भुला चुके है सब यादे मेरी

भुलानेकी कोशिश नाकाम होती चली गई

जब मैंने भी उनकी यादोंको भुलाना चाहा .....

अब तो ...

मैं भी हूँ .....वो भी है .....

लेकिन वो हम नहीं रहे जिसे ढूँढना चाहा .......

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