3 जुलाई 2009

दोस्ती को ख़त

एक ख़त एक दोस्त के नाम :

"प्रिय आदित्य,

कैसे हो ? बहुत अरसे के बाद तुम्हारा ख़त मिला .पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई.

आदि ,मुझे लगा था की छ महीने बहुत ही होते है किसीको भूल जाने को ...पर तुम्हारे ख़त ने मुझे भावुक बना दिया ....

बीस साल पहले की मुझे आज भी वह ट्रेनमें अपनी पहली मुलाकात याद है .चाय के लिए मेरे पास छूटे पैसे नहीं थे तब तुमने पैसे दे दिए और उस वक्त के साथ शुरू हुई मुलाकात खतोंका सिलसिला बनकर चलती रही ...तुम्हारे घर भी मैं आया ..ये सब कुछ कैसे भुला पाऊं ?

पर जब तुम मुझे मिले तब मुझे नहीं पता था की मैं एक बहुत ही बड़े भावी उद्योगपति के सामने बैठा हूँ जो आने वाले एक सालमें पुरे देश के आर्थिक नक्शे को बदल डालेगा ...दिन प्रतिदिन जब तुम्हारे चर्चे पत्रिका में पढ़े , अखबारों में पढ़ा ...टी वी पर देखता गया ...सच मुझे इतनी खुशी मिलती थी ...पर दोस्त , अब तो तुम्हारे पास न तो वक्त रहेता होगा किसी एक आम दोस्त के लिए , कितने सारे काम होते होंगे तुम्हे ? तुम्हारे पास कितने लोगों का हुजूम रहता होगा ...और शायद तुम्हे अब मैं याद भी आता होगा या नहीं ? तुम तो आसमां के आफताब बन गए हो ..और हम यूँही जमीं की धूल ही है ....क्या मेल होगा ? तुम्हारा और हमारा ? बस येही सोच कर तुम्हे ख़त न लिख पाये ...

तुमने आज मुझे याद कर लिया बस इतना ही काफ़ी है मेरे लिए ...तुम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो ये ही भगवान से प्रार्थना करता हूँ ....

एक छोटी सी कहानी :

एक कमरा था ...पुरा दुनियाभर के लोगों से भरा हुआ था ...वहां पर दुनिया का एक नामी चित्रकार बैठा हुआ था .जिसके सारे जहाँ में चर्चा थी ...और कई अवार्ड उसे मिले थे । एक आम आदमी वहां पर आया ....उसे अन्दर आने नहीं दिया गया ...तो वहां पर गेट के पास बैठ गया ....अचानक शोर्ट सर्किट से होटल के सबसे ऊपर वाले मजले पर आग लग गई ....फायर अलार्म बजा ....कमरे में अँधेरा हो गया ...सब भाग गए ..पर आग पर तुंरत काबू पा लिया गया ।बिजली भी तुंरत वापस आई ...कमरा खाली था ....बस एक कुर्सी पर एक इंसान बैठा था .चित्रकार उसके पास गया .गौरसे देखा तो वह उसके बचपन का दोस्त था जिसने उसके हर बुरे वक्त में उसका साथ दिया था .स्कुल में अपने होम वर्क की कॉपी उसे देखर ख़ुद मास्टरजी की मार खायी थी । एक सीधे सादे कपडों में लिपट कर आज एक बार फ़िर दोस्ती सामने खड़ी थी ......

और क्या कहूँ ?

तुम्हारा दोस्त

विजय

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक सीधे सादे कपडों में लिपट कर आज एक बार फ़िर दोस्ती सामने खड़ी थी ......

    और क्या कहूँ ?khoobsurat post...dosti ki mahak se bhari...

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