कल रात कुछ बारिश हुई ,
हलकी फुहारोंने तकिये को भिगो दिया ,
कुछ सपने सहेजकर रख दिया था वहां ,
भीग गए उस रिमज़िम में ....
निचोड़ कर उन ख्वाबोंसे एक पयमाना भर लिया ,
और उनके खुमार को एक घूंटमें पी गया .....
सपनोंको मैंने डोरी पर सुखा दिया ,
उड़ न जाए तेज हवाओंसे इस लिए क्लिप भी लगा दिया ....
थोडी धुप निकली और तेज हवा भी चली
फ़िर भी सपने सूखे ही नहीं ...
प्यारकी खुशबु ने उसे गिले और सिले ही रखे है ,
अब उन सपनोंको मैंने यूँही तह लगाकर
आंखोंकी अलमारी में फ़िर सहेज कर रख दिया ......
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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कुछ सपने सहेजकर रख दिया था वहां ,
जवाब देंहटाएंभीग गए उस रिमज़िम में ....
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भीगे हुए सपने --- इन सपनो को सुखाइए नही --- ये भीगे ही बहुत खूबसूरत है.
बहुत खूब लिखा है.
अब उन सपनोंको मैंने यूँही तह लगाकर
जवाब देंहटाएंआंखोंकी अलमारी में फ़िर सहेज कर रख दिया ......
Bahut sunder kavita likhi hai aapne.
- Sonal
(http://princhhi.blogspot.com)
(spsenoritasp@gmail.com)