1 मार्च 2013

कल आईने में देखा था तुझे

कल आईने  में देखा था तुझे ,
मेरे सपने दुल्हनका जोड़ा पहनकर
मुखातिब हुए थे मेरी आँखोंमें ,
और शरमा रहे थे पलकोंकी चिलमनमें ......
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रात चाँद बैठा इंतज़ार कर रहा था मुंडेर पर ,
वो बेखबर सोते रहे थे सपनोंकी रजाई ओढ़कर ....
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चलो आज उन्हें हालेदिल कह देते है ये सोचकर बैठे रहे ,
ना उनका इस गली से गुजरना हुआ ,न मिलन का बहाना ....
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कोई आकर रोज मेरे दिल पर दस्तक दे कर चला जाता है ,
और मैं घरके किवाड़ खोलकर निगाहोंसे ढूंढता रहता हूँ ....

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  2. सम्मानित कवियत्री प्रीती टेलर जी | सुन्दर भाव अभिव्यक्तियों की झलकियों के लिए शुभकानाएं | संभवतः टंकण की त्रुटी की वजह से आईने की जगह आयने छप गया है कृपया सुधार लें |

    जवाब देंहटाएं
  3. चलो आज उन्हें हालेदिल कह देते है ये सोचकर बैठे रहे ,
    ना उनका इस गली से गुजरना हुआ ,न मिलन का बहाना ....

    खूबसूरत शेर, बेहतरीन प्रस्तुति. बधाई प्रीति.

    जवाब देंहटाएं

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