9 दिसंबर 2011

बेहद खुश ........

दूर दूरसे काले साए चले आ रहे थे ,
लगता था बहुत बड़ा हुजूम है ,
मुझे लगा इसे चीरकर जाना है ,
अंधकार और उजालेके बीच भी जंग छिड़ गयी थी ,
अँधेरा धक्के देखर उजालेको बाहर कर रहा था ,
उजालेको भी जिद्द थी वो न हटेगा पीछे कभी ,
काले काले साए लम्बी सड़क पर चले आ रहे थे .....
पीछेसे चली आ रही थी कारें लगातार ...
उनसे पता चलता था की ये साए लगातार कहीं जा रहे थे ....
बस चलते गए यूँ लगातार ,
एक दो एक दो करके साए पाससे गुजर जाते थे ,
और मेरे अंतिम पड़ाव पर हर साए से परे ,
वो ही अकेली सी मैं ,
सड़कके किनारे बैठी हुई ,
देख रही थी अँधेरेकी हार और उजालेकी जीतको ...
मुस्कुराकर हर साए को चीर हम दोनोंही खुश थे ....
बेहद खुश ........

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