2 दिसंबर 2011

वादा मेरा ....

बहुत तफतीशके बाद किसीकी तक़दीर लिखने चली ,
अँधेरा घना था ,कागज़ कोरा था और कोरा ही रहा ,
ये न पता चला की बिन स्याहीकी कलमसे
मैं चुपचाप एक सफे पर झख्म बनाने चली थी .......
सिसकते सफे पर एक खामोश दास्ताँ
पुकारते हुए बुलाने लगी मुझे ,
मेरी तक़दीर तो तुम लिख चुकी ....
तुम्हारा और मेरा प्यार बस यूँही खामोश
सोया रहेगा यहाँ ,
बस ये जहाँ
सिर्फ मैं तुम और हमारे जज्बात .....
जरुरी नहीं इसे दुनिया देखे या न देखे ......
कभी जो बह गया कोई धारा में ...
कभी कोई फाड़ कर चला गया ....
कभी कोई उसपर लिख देगा स्याही से ....
फिर भी ये तेरी लिखी तक़दीर
उसे वो मिटा न पायेगा ....
वादा मेरा ....
मैं तुम्हे न भूल पाऊंगा ....
और जानता हूँ तुम्हारे दिलमें लिखा ये कोरा कागज़ मेरे नाम !!!!!!

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