21 सितंबर 2011

खिड़की का कांच

मेरे घरकी एक खिड़की का कांच आज टूट गया ,
कोई बहती हवा का झोका बिन पूछे आ गया ....
लिख कर लाया था वो मेरे वतनका एक पैगाम ,
चल एक बार फिर वतन को हो आये .....
आती हवाओंने दिया है न्यौता वतनकी सफरका 
दीवालीकी खुशबू फिर गूंज रही है जहनके जहानोमे ......

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