6 अप्रैल 2011

मेरे घर आई ....

सुबह डोरबेल बजी ...दरवाजा खोला तो सामने ख़ुशी खड़ी थी ...बड़ी ही मासूम ,हंसती हुई ,कथ्थई आँखें ,काली खुली लहराती झुल्फें ,आसमानी रंग के कपडे पहने ,लगा जैसे आँखोंके काजलमें कितने ही सपने तैरते होंगे ?????
मैंने परिचय पूछा ...
उसने अपना परिचय दिया ....
मैंने कहा मैं तुम्हे नहीं पहचानती ....
पर उसने कहा देखो मुझे तो तुम्हारे पास रहने का हुक्म है ....
मैंने उसे कहा हुक्म को छोडो अगर तुम्हे अपनी मर्जीसे जाना हो तो तुम किसके पास जाना पसंद करोगी ????
और ये हुक्म मैं तुम्हे देती हूँ ....अपने घर आने के हुक्म की तमिल करने से .....
ख़ुशीने कहा नहीं गर ये किसीका हुक्म है तो ये मेरी आत्मा का है
और मेरे दिलने भी ये हुक्म कर दिया की मेरी आत्मा की आवाज भी सच है ....
मैंने कहा आओ ...बैठो ..तुम ...
कुछ किताबें थमा कर मैं अपने काममें मशरूफ हो गयी ...
ख़ुशी साये की तरह मेरा पीछा करने लगी ....
मुझसे बाते करने लगी ....
उसने कहा मुझे .... तुमने अब तक कभी कोई काम अपने लिए ,अपनी ख़ुशी के लिए नहीं किया ...जब करना भी चाहा तो जब दुसरेने आवाज लगाई तुम दौड़ी गयी ........बस अब मुझे तुम्हारे पास रहना है ....तुम अपने लिए कुछ ना करो पर जो भी करो तुम्हे मैं मिलती रहूँ ......
मैंने सोचा ....चलो आज का दिन मैं खुद को समर्पित कर दू ...और ये ख़ुशी के साथ पूरा वक्त गुजार दूँ .....
डोर बेल फिर बजी ......
बेटा घर पर आया ....मम्मी कल मेरा मेथ्स का टेस्ट है ..मुझे कुछ नहीं आता ..आप सिखा दो ना !!!!!! मैंने ख़ुशी को देखा मुड़कर ...और वो ....!!!!

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