7 जनवरी 2010

चुप्पी ...

चुप था सूरज

चुप था रातको चाँद भी

चुप थी वादियाँ

चुप थी ये मयकशी सी शाम ,

बस आज की शाम बहुत कुछ बोल गयी

यूँ ही खामोश रहकर ....

इंतज़ार जिसका रहा हर पल हमें ,

प्यारके इजहार भरी नजरकी जो हसरत पल रही थी दिलमें

ख़ामोशीके आलमकी बहती हवामें हमें वो मिल गयी ...

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सहे कहा प्रीटी जी आपने !!
    'जुबाँ जो कहने में लड़खड़ाती है !
    खामोशी बड़ी साफगोई से कह जाती है !!'
    बहुत खूब !!!!

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