25 नवंबर 2009

मतलब ...!!!

आज हमें देखकर आयना भी परेशां सा लगा ,

उसे भी बदले बदले से नजर आने लगे थे ...

अपने ग़मोंको हम एक हँसी के दामनमें लपेटे चले थे ,

क्या कहे जो जीने की वजह थे वो ही मुंह मोड़े जा रहे थे ....

बस हम तो टूटे खिलौनेसे पड़े हैं घरकी फरस पर बिखरेसे ,

खेले थे हमारे जज्बातोंसे खुदका दिल बहलानेको कभी

और मतलब निकल जाने पर

आज अजनबीकी तरह आँख चुरा कर चले जा रहे थे .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. बस हम तो टूटे खिलौनेसे पड़े हैं घरकी फरस पर बिखरेसे ,
    जिन्दगी में ऐसे कई अनुभव हमें मिलते हैं। अच्छी भावाभिव्यक्ति।

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