2 नवंबर 2009

ऋणमुक्ति ....

एक टूटे पेड़ के पत्ते से पूछा गया :

तुम्हे परेशानी नहीं होती क्या ? यूँही टूट गए ...????

उसने कहा थक गया था मैं यूँ ही एक जगह लटके हुए ...

बस अब हवाके साथ दुनियाकी सैर को मन कर गया .......

सूख जाने की न फ़िक्र कोई ना गिला है मुझे ....

जो जिया खूब जिया मैंने ....

बस धरतीकी धूलमें घुलना है मुझे ........

उसकी जड़ोने मुझे सींचा था हमेशा से ,

आज उसकी खुराक बनना है मुझे ....

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