3 अगस्त 2009

फर्क तो बस इतना सा ....

पूछा कभी बहारोंसे खुशबू कहाँ से लाती हो ?

कहा उसने खुशबू कहाँ है ? ये तो आपका नजरिया है .......

++==================================

मुझे कभी अपनेसे प्यार करना कहाँ आया ,

ये तो तुम थे जिसने मुझे प्यार करना सिखाया ,

अपने आपसे नहीं बेगरज किसीसे प्यार करके तो देखो ,

जहांसे ही दिल भरकर प्यार मिल जाया करेगा ....

==================================

क्या फर्क है जन्नतमें और जहन्नम में ?

फर्क तो बस नजरिये का ही है ....

क्या होती है इब्तदा और इन्तेहाँ ?

फर्क तो बस नजरिये का ही है .....

जहाँ इन्तेहाँकी आखरी कड़ी है

वहां पर ही किसीकी इब्तदा होती है .........

3 टिप्‍पणियां:

  1. फर्क तो बस नजरिये का ही है .....

    जहाँ इन्तेहाँकी आखरी कड़ी है

    वहां पर ही किसीकी इब्तदा होती है .........
    waah sahi fark bas nazariye ka hai.bahut khub

    जवाब देंहटाएं
  2. जी हाँ! सब नज़रिये का ही मुद्दा है
    अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...